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Tuesday, October 12, 2010

हमें आदत नहीं है ...


गुबारों-गर्द चलने की
हमें आदत नहीं है,
गेसुओं पर मचलने की
हमें आदत नहीं है।
हम पत्थर के बुत हैं,
ढल गए जैसा हमें ढाला,
वक़्त-बेवक्त ढलने की
हमें आदत नहीं है।
आगोश-ए-आइनों में ही
रहते हैं हम हर पल,
गाह-चेहरा बदलने की
हमें आदत नहीं है।
हम, गिर-गिर के जो संभले
नहीं उनमे से दुनिया,
गिरने लायक संभलने की
हमें आदत नहीं है।
थे जो हमदर्द, उनसे ही
बहुत से दर्द खाए हैं,
दर्द से दिल दहलने की
हमें आदत नहीं है।
नहीं 'संघर्ष' इस दुनिया
से कोई चाह हमको,
चाह में गम के जलने की
हमें आदत नहीं है।

-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद

1 comment:

  1. हम, गिर-गिर के जो संभले
    नहीं उनमे से दुनिया,
    गिरने लायक संभलने की
    हमें आदत नहीं है।

    बढि़या गज़ल...
    उम्‍दा शब्‍द चयन।

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