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Thursday, October 28, 2010

जबसे मेरा मीत वो मुझसे रूठ गया

जबसे मेरा मीत वो मुझसे रूठ गया,
सपनो का भी दामन जैसे छूट गया।
चाँद कहे कि मुझको अब आवाज ना दो,
तारों का भी जैसे कि दिल टूट गया।।

फूलों की रंगत भी जैसे खोयी है,
खुशबू अभी-अभी जी भरके रोई है।
पत्तों पर ओंस नहीं गगन के आंसू हैं,
आँखें जाने कब से ये बिन सोयी हैं।।

सूरज जिद पर बैठा है कि ढलना है,
पर्वत कहते हैं हमको अब गलना है।
परवाना होता तो जलकर मर जाता,
मैं शम्मा हूँ मुझको हर पल जलना है।।

तितली भी रोते-रोते अब हार गयी,
भँवरे को भी दर्द-ए-जुदाई मार गयी।
आवाज तो हमने कई बार दी है उनको,
'संघर्ष' मगर ये कोशिश भी बेकार गयी।।

-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद


2 comments:

  1. सूरज जिद पर बैठा है कि ढलना है,
    पर्वत कहते हैं हमको अब गलना है।
    सुन्दर बिम्ब

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  2. hmmmmmmmm.............nice lines

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