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Tuesday, November 16, 2010

युवा : अंतहीन भटकाव की ओर ..


"युवा-शक्ति राष्ट्र की क्षमता का पैमाना होती है"
यह उक्ति स्वतः ही किसी राष्ट्र के युवाओं की महत्ता को व्यक्त करती है. युवा-शक्ति राष्ट्र की शक्ति का प्रतीक मानी जाती है. राष्ट्र के समृद्धि का द्योतक मानी जाती है. ऐसे में यदि किसी राष्ट्र की कुल जनसँख्या की पचास प्रतिशत से अधिक युवा-शक्ति हो, तो उस राष्ट्र का विश्व के समृद्ध और अग्रणी राष्ट्रों में सम्मिलित ना होना, लगातार कई दशकों से विकासशील राष्ट्र कहा जाते रहना, निश्चय ही उस राष्ट्र की युवा-शक्ति तथा उसकी क्षमता पर प्रश्नचिह्न लगाता है. ऐसा ही एक अनुत्तरित प्रश्न लग गया है अपने राष्ट्र हिंदुस्तान के युवाओं पर भी. 
पचास प्रतिशत से अधिक युवाओं का भारत देश आज भ्रष्ट राष्ट्रों की सूची में गिना जाता है. भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी जैसी ना जाने कितनी लिप्साओं में हमारा राष्ट्र अग्रणी माना जाता है. आज युवाओं का एक बड़ा वर्ग बड़ी शान से कहता है - "सौ में नब्बे बेईमान, फिर भी मेरा भारत महान" और फिर इस मसखरी पर खीसें-निपोरने वाले मसखरों की एक लम्बी फेहरिस्त है. इन सबके बीच राष्ट्र भाव कहाँ लुप्त हो जाता है, इस बात का किसी को भान ही नहीं रहता. 
आज का युवा वर्ग राष्ट्र की अवधारणा से शून्य हो चुका है. आज युवा नैतिकता शब्द का अर्थ जानने-समझने की इच्छा नहीं रखता. उसे इस बात से सरोकार नहीं है कि राष्ट्र की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर क्या है, लेकिन उसे भली-भांति पता है कि बॉलीवुड में इस वर्ष किस श्रेणी की कितनी फिल्में बन रही हैं. 
उसे नहीं पता कि इस वर्ष सरकार ने गन्ने के लिए कितना मानक मूल्य निर्धारित किया है, लेकिन उसे बड़े-बड़े मल्टीप्लेक्स में टिकट की कीमत पता है. उसे इस बात से मतलब नहीं होता कि हर रोज कितने गरीब भूख से बेहाल होकर दम तोड़ देते हैं, लेकिन उसे पता होता है कि ऐश्वर्या अपनी सुन्दरता के लिए खाने में क्या परहेज करती है. उसे नहीं पता कि उसके मुंह में निवाला पहुंचाने के लिए किसान कितनी  मेहनत करता है, लेकिन उसे पता है कि अपने शरीर-सौष्ठव को बनाए रखने के लिए ऋतिक रोशन कितने घंटे व्यायामशाला में रहता है. 
आज युवाओं के अंतर्मन से घटती नैतिकता, विचारों में बढती पाशविकता बहुत गहरा प्रश्न खड़ा करती है कि 'क्या युवा दिशाहीन हो गया है ?' 
कदापि नहीं!! युवा दिशाविहीन नहीं है, अपितु उसने एक गलत दिशा अख्तियार कर ली है. यदि कोई चौराहे पर खड़ा दिशाविहीन सा ये सोच रहा हो कि किस मार्ग पर जाना चाहिए तो उसे समझाकर सही दिशा दिखाई जा सकती है, परन्तु यदि कोई गलत मार्ग पर आगे बढ़ गया हो तो उसे सही रस्ते पर लाना दुष्कर होता है और आज युवा गलत मार्ग पर बहुत आगे बढ़ गया है.
आज युवाओं का बड़ा वर्ग दैहिक सुख, समृद्धि तथा मन के पाशविक विचारों की उत्तेजना में कुछ भी कर जाने को तत्पर है. जिसका साक्ष्य हर रोज समाचार पत्रों की सुर्खियाँ हैं जिनमे चोरी, लूट-पाट, मार-पीट, हत्या और बलात्कार जैसे समाचार वर्तमान निष्‍कृष्‍टता की निम्नतम हद को स्पष्ट करते हैं, जिनमे लिप्त एक बड़ा वर्ग युवाओं का ही है.
वर्तमान में नशाखोरी भी युवाओं में पसंदीदा शगल बन चुका है. सिगरेट के लम्बे कश में धुएं के छल्ले बनाकर राह चलती बालाओं पर फब्ती कसना, नशे में डूबकर देर रात पार्टियाँ करना आज के युवा की शान है. ऐसे में यदि इन सब महान उपलब्धियों के बाद हिंदुस्तान भ्रष्ट राष्ट्रों में शुमार है, तो क्या गलत है?
परन्तु यह सबकुछ लिखने का उद्देश्य मात्र लिखना ही नहीं है, बल्कि यह लिखना भी तभी सार्थक है कि यदि पढ़कर हम यह सोच सकें कि इन सबका कारण क्या है? क्यों है? और फिर उस कारण को दूर करने का प्रयास करें. 
जो भी हो इन सबके लिए दोषी हम स्वयं ही हैं. ये सब कुछ पढने-देखने वाले हम सब इसी युवा-पीढ़ी का हिस्सा हैं. हम सब या तो गलत हैं या फिर गलत के मूक-दर्शक. यदि हम अपने स्तर पर प्रयास करें तो परिवर्तन भी संभव है. यदि हम समाधान का हिस्सा नहीं हैं तो फिर हम खुद ही एक समस्या हैं.

-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद

3 comments:

  1. well said..........tiwari ji

    sahi baat

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  2. bahut hi achchhi soch aur achchhe vichar ke sath likha hua ek achchha lekh...
    gambhir prashn uthaya hai..
    Lekin agar koi samadhan bhi batate to aur bhi behtar hota...

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