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Monday, April 25, 2011

भगवान नहीं रहे...!!! (God is Dead)


सत्यनारायण राजू उर्फ़ सत्य साईं बाबा की मृत्यु हो गयी. बाबा कहना तो उन्हें कमतर करके आंकना होगा. सत्य साईं भगवान नहीं रहे. 
भगवान क्यों हैं? इस पर कोई तर्क नहीं किया जाना चाहिए. क्यूंकि जहाँ आस्था की बात होती है वहां तर्क की गुंजाइश नहीं रह जाती है. ऐसे ही तर्कों से परे सत्य साईं भगवान का भी कारोबार चलता रहा है. 
देश के दोनों बड़े दल इस मुद्दे पर एक हैं. दोनों के सर्वेसर्वा उनकी मौत पर दुखी हैं. प्रधानमंत्री मनमोहन और राष्ट्रपति भी गहरे शोक में डूबे हैं. 
देश के एक और भगवान सचिन भी अपने भगवान के मरने के गम में नाश्ता छोड़कर बैठे हैं. उन्होंने खुद को होटल के कमरे में बंद कर लिया. समाचार चैनलों का कहना है कि भगवान की मौत से पूरा देश दुखी है. 
भगवान ने अपने जीवन काल में बहुत चमत्कार किये. लगभग हर वो चमत्कार जो कोई जादूगर कर सकता है. भारत के महान जादूगर पीसी सरकार ने एक बार उन्हें खुली चुनौती देते हुए कहा था कि वो एक बार उनके सामने अपने चमत्कार करके दिखाएं, वह अपने जादू से भी वह सब करके दिखा देंगे. लेकिन भगवान की हिम्मत नहीं हुई उस चुनौती का सामना करने की. 
वैसे कहा ऐसे भी जा सकता है कि कहाँ भगवान और कहाँ एक जादूगर की चुनौती.. इतनी छोटी चुनौती को स्वीकारते भी कैसे ?
भगवान काफी दिनों से बीमार चल रहे थे. समझ में ये बात नहीं आ रही है कि आखिर उनके भक्त उनके जीवन की रक्षा के लिए किस से प्रार्थना कर रहे थे?
भक्तों का दुःख मंतर-भभूत से दूर कर देने वाले भगवान को अस्पतालों और डॉक्टरों की जरूरत क्यों पड़ गयी? उनके लिए विदेश से डॉक्टर बुलाना पड़ा. 
वो भी ऐसे में जबकि उन्होंने खुद के मरने की उम्र भी 96 साल बताई थी. इस हिसाब से उन्हें अभी 2022 तक तो जीना ही था. तो क्या उनके भक्तों को उनकी भविष्यवाणी पर विश्वास नहीं था, जो सबके सब उनकी प्राणरक्षा में लग गए थे. और फिर क्या कारण रहा कि उन्हें अपनी भविष्यवाणी को झुठलाना पड़ गया? 
शायद कलियुग में बढ़ते पापों से उन्हें बोरियत होने लगी थी, इसलिए अस्पताल में बिस्तर पर पड़े-पड़े उन्होंने अपनी भविष्यवाणी संशोधित कर ली होगी, जिस पर किसी का ध्यान नहीं गया. 
या फिर ऐसा भी हो सकता है कि उन्होंने 11 साल की समाधी ले ली है, जिसे ये मूर्ख डॉक्टर सब मौत मान रहे हैं. 
सत्य साईं भगवान ऐसे बिना बताये कैसे मर सकते हैं.
उनके तमाम भक्तों को इस बारे में सोचना चाहिए कि कहीं यह उनकी समाधी का कोई प्रकार तो नहीं है..???

अच्छा अभी इधर एक और कयास भी लगाया जा रहा है... कि कहीं अस्पताल के वास्तुदोष के कारण ही तो भगवान को नहीं मरना पड़ा है ??? 
यह भी एक गम्भीर सवाल आ गया है.. वास्तुदोष भगवान को भी मार सकता है... 
तो अब इसके बाद वास्तु के जानकार लोगों का बाज़ार थोडा जोर पकड़ेगा.. 
भारत भगवानों का देश है... ज्यादा चिंता की बात नहीं है.. फिर कोई भगवान पैदा होगा.. 
तब तक सभी अस्पतालों के वास्तु-दोष ठीक कर लिए जाएँ ताकि अगले भगवान को वास्तु का शिकार न होना पड़े. 
मैं भी अपने कमरे का वास्तु ठीक करवा लेता हूँ... भगवान की पोस्ट खाली है...
क्यूंकि दुखी मैं भी हूँ... ये सोचकर कि "भगवान नहीं रहे..."


-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद


Friday, April 8, 2011

दिल फिर भी जीत नहीं पाए (Still alone..!)



गीत, ग़ज़ल, कविताई करके
जीवन जीत नहीं पाए..
हार गए सब लफ्ज़ मगर
दिल फिर भी जीत नहीं पाए

वो कब जीते, हम कब हारे..
कब टूटे सपनो के तारे ?
कब हमने उनसे सत्य कहा
कब झूठ समझ पाए सारे ?
पल-पल कर जीवन रीत गया..
पर सपने रीत नहीं पाए..
दिल फिर भी जीत नहीं पाए..

दिल की बातें जंग हुईं कब.. 
तसवीरें बदरंग हुईं कब ?
कब हँसना-खिलना छूट गया..
नम आँखें अपने संग हुईं कब ?
हर किस्सा हमने कह डाला..
लेकिन वो गीत नहीं गाये..
दिल फिर भी जीत नहीं पाए...


- अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद

(तस्वीर गूगल सर्च से साभार )
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