सोचता हूँ क्या लिखूं, कोई बात बाकी नहीं.
यादों के झरोखों में, कोई हालात बाकी नहीं.
मौत की शुरुआत लिखूं,
या जिंदगी का अंत.....
खुशनुमा पतझर लिखूं
या उजड़ा हुआ बसंत....
बहार के कांटे लिखूं.....
या पतझर के फूल.........
झूठ का आईना लिखूं
या चेहरे की धूल........
इतने दर्द झेल लिए हैं, मेरी कलम ने
अब इसके खून में, कोई जज्बात बाक़ी नहीं.
सोचता हूँ क्या लिखूं..................................
दिल का वही दर्द लिखूं
या बेदर्द दुनिया.....
बेगरज आंसू लिखूं
या खुदगर्ज दुनिया.......
वक़्त के थप्पड़ लिखूं
या गाल अपने...........
मायूस आँखें लिखूं
या हलाल सपने........
कैसे करूँ जिंदगी में सवेरे का इंतजार...
अब तो जिंदगी में कोई रात बाकी नहीं...
सोचता हूँ क्या लिखूं.............................
ख्वाबों की दास्ताँ लिखूं,
या कत्ल सपनों के .....
गैरों के हमले लिखूं, या
कातिल शक्ल अपनों के
भीड़ का मातम लिखूं या
खामोशियों का शोर......
मरहमों के जख्म लिखूं
या जख्मों के चोर........
जख्म के फूल भी कैसे खिले चेहरे पर.....
आंसुओं की भी कोई बरसात बाकी नहीं...
सोचता हूँ क्या लिखूं................................
बुझता हुआ चिराग लिखूं
या आंधी का हौसला.....
गुजरती हुई साँसे लिखूं,
या मौत का फैसला.......
खुशियों का जनाजा लिखूं
या ग़मों की बारात...........
सोचता हूँ आज, मैं
लिखूं कौन सी बात........
'संघर्ष' कब्र में कैसी शहनाई की तमन्ना..
अब तो मौत की भी बारात बाकी नहीं.....
सोचता हूँ क्या लिखूं...............................
-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद
बहुत सुन्दर अभिब्यक्ति| धन्यवाद|
ReplyDeletejo man mai aaye vahi likhiye
ReplyDeletekhubsurat rachna
..
ek dam mast...bohot he sundar aur pyara likha hai apne...
ReplyDeleteबहुत खुबसूरत अभिव्यक्ति..
ReplyDelete@Patali- उत्साहवर्द्धन के लिए धन्यवाद ।
ReplyDelete@Deepti- धन्यवाद दीप्ति जी ।
@ K. C. Sharma ji- बहुत आभार आपका ।
बढ़िया रचना लगी,बधाई
ReplyDeleteनारी स्वतंत्रता के मायने
@मिथिलेश जी - धन्यवाद आपका ।
ReplyDeleteदर्द के हर पहलू को सोचा है ...लिखने की कश्मकश अच्छी लगी ..
ReplyDeleteकुछ न लिखते लिखते भी इतनी लम्बी कविता लिख दी और क्या लिखोगे भाई ;)
ReplyDeleteविरोदाभास का आभास लिये सुन्दर रचना
लिखते रहिये
आपने तो अन्य लेखकों व कवियों को लिखने के लिये इतने सारे विषय सुझा दिये हैं ! शुक्रिया !
ReplyDeleteगहन अनुभूतियों और जीवन दर्शन से परिपूर्ण इस रचना के लिए बधाई।
ReplyDeletesundar bhavanaon se saji fulvaree ko dekh kar khushi hui.anya rachanayen bhi dekheen. sulajhe vicharo vala blog abhi tak meri nazaron se door kaise rahaa.. badhai.
ReplyDelete@ सम्माननीय गिरीश जी.. इस उत्साहवर्द्धन के लिए आपका आभार..
ReplyDeleteमन में जो आ जाता है, बस वही सब उतार देने की कोशिश भर है.. आपको सही लगा, यह मेरा सौभाग्य है..
@ Dr.(miss) Sharad Singh - उत्साह संचार के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद...
@आदरणीया अनीता जी.. यह तो बिलकुल ही उलझे क्षणों में मन में उभर आये शब्द हैं.. जब सब कुछ सूझ रहा था.. लेकिन कुछ भी समझ नहीं आ रहा था.. और आपने प्रसंशा के इन शब्दों से तो उत्साह को चरम पर पहुंचा दिया,,,
@धन्यवाद मोहिंदर जी...
@ संगीता जी.. इस सम्मान और स्नेह के लिए आपका बहुत बहुत आभार.. आपके बहाने आज चर्चामंच तक भी पहुँच गया.. बहुत से बेहतरीन लोगों को पढ़ने का सुअवसर भी मिला..
हार्दिक धन्यवाद आपका..
जीवन की विसंगतियों का बढ़िया आकलन किया है...
ReplyDeleteअच्छी कविता