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Saturday, April 18, 2015

बहुत अब हो गया (Its Enough)



बहुत अब हो गया किस्सा
मनाने रूठ जाने का।
फकत अब वक़्त आया है
किसी ताज़ा बहाने का।।
हमीं से अब छुपाते हो 
तुम अपने दिल की लाचारी।
कि अब तो छोड़ भी दो तुम 
ये किस्‍सा आजमाने का।।
किसी के साथ हंसने का
तरीका अब पुराना है।
कोई देखो तरीका तुम
नया दिल काे जलाने का।।
तुम्‍हें तितली कहूं, या फूल 
या गुल या कहूं गुलशन।
तुम्‍हीं कह दो तरीका अब
खुद ही तुमको बुलाने का।।
अब तुम भूल जाओ वो 
तुम्‍हारी याद में रोना।
कि गुजरा वक्‍त है अब 
वक्‍त वो आंसू बहाने का।।
चमकता चांद जो देखा है 
तुमने आसमां में कल।
उसी से ये हुनर सीखा है
दाग अपने दिखाने का।।

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 

Tuesday, June 3, 2014

खामोशी का अर्थ नहीं हम उनको भूल गए (Can't Forget)



खामोशी का अर्थ नहीं,
हम उनको भूल गए..
उन्होंने कैसे सोच लिया,
कि बागों से फूल गए..

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं,
जो टूट नहीं सकते...
कुछ दामन ऐसे होते हैं,
जो छूट नहीं सकते..

कुछ लम्हे ऐसे होते हैं,
जो जीवन बन जाते हैं...
कुछ पल ऐसे हैं, जिनको
ये पल लूट नहीं सकते..

कुछ नजरें ऐसी होती हैं,
जो नजरों में उतर जाती हैं..
कभी-कभी कुछ बातें
दिल में, घर कर जाती हैं..

कभी किसी का आना भी,
तनहा कर जाता है..
कभी किसी की यादें दिल
में खुशियाँ भर जाती हैं...

ब्याज तो हर इक रिश्ते
का हम चुकता कर आये...
लेकिन शायद लगता है
हम बिन मूल गए..

खामोशी का अर्थ नहीं,
हम उनको भूल गए..

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण

Saturday, July 30, 2011

एक ख्वाब ही तो है..(Its a dream only)



मेरी आँखों का वो एक ख्वाब ही तो है।
वो चेहरा नर्म-नाजुक गुलाब ही तो है।।


प्यार का हर लफ्ज उस से जुड़ता है।
वो एक मोहब्बत की किताब ही तो है।।


पास जाऊं भी तो कैसे मैं हवा सा पागल।
बुझ न जाये उम्मीदों का चराग ही तो है।।


वो मेरे सामने भी हो तो कैसे देखूंगा।
मेरी निगाह भी उसका नकाब ही तो है।।


मेरे इश्क का सवाल उसे कहूं कैसे।
वो झुकी सी नज़र मेरा जवाब ही तो है।।


उसकी तारीफ में गजलें तमाम लिखता हूँ।
वो साँस लेते हुए कोई महताब ही तो है।।

-अमित तिवारी 
समाचार संपादक
अचीवर्स एक्सप्रेस 

Friday, January 21, 2011

कुछ इस तरह से प्यार करता हूँ...(I love her....)




मैं उसे कुछ इस तरह से प्यार करता हूँ..
हर घडी उस प्यार को इंकार करता हूँ...

है उसे ये ही शिकायत कि बेवफा हूँ मैं...
पर मैं उस से वफ़ा बे-शुमार करता हूँ..

उसकी करीबी से कभी यूँ डर भी लगता है...
साथ उसके खुद को ही दीवार करता हूँ..

आंसू के मोती को हंसी के तार पर जड़ 
भाव के फूलों से मैं श्रृंगार करता हूँ..

आएगा वो फिर कभी तो रूठकर खुद से  
यूँ अपने हर अफ़सोस को लाचार करता हूँ..

एक दफा मैंने कहा था प्यार है तुमसे..
वो कह गया मैं 'भाव का व्यापार' करता हूँ

-अमित तिवारी
समाचार संपादक 
निर्माण संवाद

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