मैं दीप हूं, तुम दीप्ति हो।
मैं दिवस और भोर तुम
हो मेरे चित की चोर तुम।
मैं अग्नि हूं, तुम तपन हो
मैं नींद हूं, तुम स्वप्न हो।
मैं इमारत, नींव तुम
मैं आत्म हूं और जीव तुम।
मैं नेत्र हूं, तुम दृष्टि हो
मैं मेघ हूं, तुम वृष्टि हो।
मैं साधु हूं, तुम साधना
मैं भक्ति, तुम आराधना..
मैं समंदर, तुम नदी हो
मैं हूं पल छिन, तुम सदी हो
मैं ब्रह्म हूं, तुम सृष्टि हो
मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो..
-अमित तिवारी
दैनिक जागरण
(चित्र गूगल से साभार)
(चित्र गूगल से साभार)