...........................
Showing posts with label बहन. Show all posts
Showing posts with label बहन. Show all posts

Sunday, August 10, 2014

गगन जैसी बहन मेरी (Sister Vs Sky)




लिखना बहन पर
या लिखना गगन पर
दोनों ही मुश्किल है...
गगन नीला है क्‍यों?
क्‍यों उसके हाथ चंदन?
गगन का छोर क्‍या है?
क्‍यों उसके शब्‍द वंदन?
वो ऐसा है तो क्‍यों है ?
ये ऐसी है तो क्‍यों है?
गगन सब देखता है!
बहन सब जानती है!
गगन बन छत्र छाए!
बहन आंसू सुखाए!
गगन में चांद तारे!
उस आंचल में सितारे!
ना उसका अंत कोई!
ना इसका छोर कोई!
धरा पर ज्‍यों गगन है!
बस ऐसे ही बहन है!

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण

Sunday, December 9, 2012

मेरे सब सपने उसमे ही रहते हैं...(Mere sapne)

माना कि शब्दों का दामन छूटा है,
माना अल्फाजों का धागा टूटा है.
माना कुछ पल बीत गए बिन छंदों के,
माना नाम नहीं लिखे खग वृन्दों के.
लेकिन यह न सोचो सच कुछ बदला है,
रिश्तों का वो आसमान अब धुंधला है.
कुछ कोहरे मौसम के छाये हैं तो क्या!
कुछ पल गीत नहीं गा पाए हैं तो क्या!
यादों की बरसात कहाँ कब थमती है?
वो प्यारी सी बात कहाँ कब थमती है?
उसका आना-जाना, हंसना-खिलना हो,
उससे मिलना जैसे खुद से मिलना हो.
उसके लब भी मेरी बातें कहते हैं,
उसके गम मेरी आँखों से बहते हैं.
मेरे सब सपने उसमे ही रहते हैं..
मेरे सब सपने उसमे ही रहते हैं....

-अमित तिवारी (Amit Tiwari)
नेशनल दुनिया  

Friday, December 31, 2010

वह क्षीर सिन्धु है 'मेरी बहन' (My Sister)

जब भी चाहा शब्द खोजना,
अर्थ कहीं खो जाता है । 
जब चाहा कि सपने देखूं..
सपना खुद सो जाता है ।।
         उस पर कलम चलाऊं कैसे
         शब्द नही हैं उस लायक ।
         वह प्रेम-पर्व का उच्च शिखर
         मैं धरती का अदना गायक ।।
प्रस्थान बिंदु है वह मेरी
मेरे गीतों की स्वर्ण-तान ।
प्रारंभ वही और अंत वही
है मूल्य मेरा, उसकी मुस्कान ।।
                  
                      ना बाँध सकूँ शब्दों में उसे
                      ना पंक्ति कोई भी पूरी हो ।
                      वो मुझमे है, मुझमे ही रहे
                      न मुझसे, मेरी दूरी हो ।।
धरती सा धीर कहूं उसको
या चंचल जैसे मलय पवन ।
हर रिश्ता घुलकर पूर्ण हुआ
वह क्षीर सिन्धु है 'मेरी बहन' ।।

यद्यपि आज ऐसा कुछ भी नही है जिस से इस कविता का सरोकार स्थापित हो सके. वैसे भी तस्वीर कुछ ऐसी बन चुकी है कि बहन को याद करने का मतलब या तो राखी का त्यौहार हो या फिर भैया-दूज का. उसके अलावा भाई-बहन के प्रेम और रिश्ते पर चर्चा नही होती. 
किसी प्रकार की चर्चा का आधार मैं स्वयं भी नही बना रहा हूँ. ये सवाल जरूर है मन में कि आखिर इस रिश्ते का सच बस इतना सा ही तो नही है ना.... 
बस आज ऐसे ही कुछ पलों को सोचते-सोचते यह कविता बन गयी. कविता पर निस्संदेह अधिकार मेरा नही है, इस कविता पर अधिकार तो इस रिश्ते का ही है, उसी 'क्षीर सिन्धु सी बहन का है'. उसी के कहने पर यह आप सभी से साझा कर रहा हूँ.
बाकी सबसे बड़ा सत्य तो यही है कि उतनी प्यारी कविता शायद ही कभी लिख सकूँ, जितना प्यारा यह रिश्ता है. 

-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद

Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...