
कुछ ही पलों में मैं अपने ख्वाबों की जन्नत में था. आज मैं अपने साथ के उन तमाम रईसजादों की बराबरी पर आ गया था, जिनके मुहँ से अक्सर मैं ऐसे किस्से नई-नई शब्द व्यंजनाओं के साथ सुना करता था. मेरे दिमाग में तमाम शब्द बन बिगड़ रहे थे; कल अपनी इस उपलब्धि की व्याख्या करने के लिए. हालांकि पहली बार होने के कारन मैं कहीं न कहीं थोडा असंयत सा अनुभव कर रहा था.
दरवाजे पर दस्तक होते ही जब मैंने नजरें उठाई तो अपलक निहारता ही रह गया. मुझे विश्वास ही नहीं हो रहा था कि मैं अपनी सफलता के इतने निकट हूँ.
"फास्ट फ़ूड या मुगलई!?" अपने आप को सहज दिखाने का प्रयास करते हुए मैंने मजाकिया लहजे में कहा.
"नाम क्या है आपका?" सुस्पष्ट आवाज और सधे हुए वाक्य-विन्यास के साथ किये गए इस प्रश्न ने मुझे चौंका दिया.
"ज..जी..वो..सौरभ...सौरभ शुक्ला..."
"घबराइये मत, पहली बार आये हैं?"
"न....हाँ.."
"कहाँ रहते हैं?"
"यहीं......दिल्ली में."
"क्या करते हैं?"
"पढाई...इंजीनियरिंग...." मैं यंत्रवत सा उत्तर देता जा रहा था.
"परिवार ?"
"इलाहाबाद में, ....मम्मी-पापा."
"कितने पैसे दिए हैं बाहर?"
"पांच सौ..."
"कमाते हैं?"
"नहीं, ...पापा से लिए थे .....नोट्स के लिए..." मैंने अपराध स्वीकारोक्ति के लहजे में कहा.
अगले ही पल मेरे सामने पांच सौ का नोट रखा था. इस अप्रत्याशित घटनाक्रम से मैं स्तब्ध रह गया.
उन होंठों की जुम्बिश अभी भी जारी थी, "हम अपने ग्राहकों से ज्यादा बात नहीं करते, ना ही हमें उनकी निजी जिंदगी में कोई दिलचस्पी होती है, फिर भी आप से दुआ कर रहे हैं, बचे रहिये इस जगह से. हमारी तो मजबूरी है, हमारी तो दुनिया ही यहीं है. पर आपके सामने पूरी दुनिया है. परिवार है. परिवार के सपने हैं, उन्हें पूरा कीजिये..
वैसे हम सिर्फ कह सकते हैं....आगे आपकी मर्जी..जब तक आप यहाँ हैं, हम आपकी खरीदी हुई चीज़ हैं..आप जो चाहे कर सकते हैं.."
मैं चुपचाप नजरें नीचे किये चलने को हुआ.
"पैसे उठा लीजिये, हमें लगेगा हमारी नापाक कमाई किसी पाक काम में इस्तेमाल हो गयी. वैसे थोडी देर रुक कर जाइए, ताकि हमें बाहर जवाब ना देना पड़े..!"
मैं रुक गया और थोडी देर बाद पैसे लेकर बाहर आ गया, लेकिन अपनी नम आँखों से मैंने अपनी कृतज्ञता व्यक्त कर दी थी. मेरे जीवन में एक क्रांतिकारी परिवर्तन आ चुका था. मुझे लगा शायद मैं ईश्वर से साक्षात्कार करके लौटा हूँ.
खैर जो भी था अच्छा था.
सच ही तो है, कहीं भी सब कुछ बुरा नहीं होता.
-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद