...........................
Showing posts with label Valentine day. Show all posts
Showing posts with label Valentine day. Show all posts

Monday, February 14, 2011

यह कैसा प्रेम दिवस है??(Is it Love or Lust?)




आज फिर से प्रेम दिवस का शोर है. एक दिन प्रेम का... सोचकर आश्चर्य होता है कि भला प्रेम का कोई निर्धारित दिन कैसे हो सकता है? प्रेम कोई व्यापार तो नही है कि शुभ मुहूर्त देखकर किया जाए. प्रेम कोई क्षणिक भाव तो नही है जिसे किसी एक दिन के लिए सहेज कर रखा जा सके. आखिर यह कैसे संभव है कि साल भर में किसी एक दिन ही प्रेम की अभिव्यक्ति की जा सकती है.
लेकिन फ़िलहाल ऐसा ही हो रहा है.
कबीर कहते थे कि 'प्रेम न हाट बिकाय'.. लेकिन अब प्रेम हाट में बिकता है. बिक ही तो रहा है लगभग दो हफ्ते से. बाज़ार प्रेम से भरा हुआ है. जिसकी जितने प्रेम की औकात हो वह उतना प्रेम खरीद सकता है. प्रेमिका कीमती प्रेम की प्रतीक्षा में है.
कई प्रेमी उसी कीमत के दम पर ही प्रेम को खरीद लेने के लिए इस दिन का इंतजार करते देखे जा सकते हैं.
यही नही यह दिन अगर प्रेम के इजहार तक ही होता तो भी शायद कोई बात नही थी. अगर इस दिन सिर्फ तोहफों की कीमत और आकार तक ही बात रहती तो भी शायद कोई बात नही थी. सिर्फ चोकलेट और गुलाब की बिक्री और व्यापार की बात होती तो भी शायद कोई बात नही थी. मन मान ही लेता कि कोई बात नही व्यापार ही सही, होने दो इस प्यार को भी. लेकिन अभी बहुत चौंकाने वाले तथ्य सामने आये हैं. ऑनलाइन खुदरा व्यापार यसटुकंडोम के निदेशक शिशिर मिगलानी से एक बातचीत में पता चला कि इस प्रेम दिवस के इर्द-गिर्द कंडोम की बिक्री भी 15 से 20 प्रतिशत तक बढ़ जाती है. इनके ज्यादातर उपभोक्ता युवा होते हैं. इनमे से कई वह होते हैं जो कि इनसे सम्बंधित दिशा-निर्देश भी लेते हैं. अर्थात बहुत से वह होते हैं जो कि पहली बार इस में पड़ रहे होते हैं.
मन स्तब्ध है. किस प्रेम की दिशा में बढ़ रहे हैं युवा? यह प्रेम दिवस है कि वासना दिवस, इस पर भी सोचने की जरूरत है.
अच्छा एक और भी बात बहुत मजेदार है. इस प्रेम दिवस की शुरुआत कैसे हुई? संत वेलेंटाइन की याद में इस दिवस की शुरुआत हुई थी, जैसा कि कहा जाता है. वेलेंटाइन के सम्बन्ध में कोई विशेष प्रमाणिक तथ्य कहीं भी नही मिलते हैं जिस से कि यह सिद्ध हो सके कि उनकी शहादत के केंद्र में किसी प्रकार से प्रेम कारण था. वेलेंटाइन को लेकर कई तरह की कहानियां चलती हैं. उन्ही में से एक है कि तत्कालीन रोमन सम्राट क्लौडीयस द्वितीय ने अपने सैनिकों को विवाह नहीं करने देने की घोषणा की थी. उसका मानना था कि विवाह के बाद सैनिक का ध्यान और उसकी क्षमता कम हो जाता है. वेलेंटाइन चुपके चुपके सैनिको का विवाह कराया करते थे. और सम्राट को पता लगने पर उन्हें मार दिया गया. इस कहानी के कोई ऐतिहासिक साक्ष्य नही मिलते हैं. इसके अतिरिक्त कुछ कहानियां हैं वेलेंटाइन को लेकर जिनमे ऐसा कुछ भी उल्लेख नही है. न ही उसमे कहीं से भी यह पता लगता है कि वेलेंटाइन कोई बहुत बड़े प्रेम के समर्थक थे. लेकिन समय के साथ साथ उनके उसी विरोध और उनकी शहादत के सम्मान में इस दिवस को मनाया जाने लगा. अब सोच ये रहा हूँ कि यह कैसा प्रेम दिवस है कि जिसका प्रादुर्भाव ही विरोध की कोख से हुआ है? क्या प्रेम का अर्थ विरोध है? क्या प्रेम घृणा के सापेक्ष में ही किया जा सकता है? शायद प्रेम के इसी सापेक्षिक रूप के कारण प्रेम के सापेक्ष में घृणा भी उसी दर से बढ़ रही है लगातार.
माना कि पश्चिम के पास बहुत कुछ ऐसा है भी नही कि जिसके बहाने वो खुद को बहला सकें, इसलिए वो जब इस प्रेम दिवस के पीछे पागल-पागल दिखते हैं तो ज्यादा आश्चर्य नही होता है. वहां देह आधारित प्रेम की ही परम्परा है. पश्चिम में इस देह प्रेम के दिवस को मनाये जाने के कारण हैं. लेकिन भारत में इसको मनाये जाने का कोई भी तो तार्किक कारण नहीं है.
अच्छा मान लीजिये प्रेम दिवस मनाया ही जाना है तो फिर कोई तार्किक दिवस क्यों न हो? कोई ऐसा दिवस क्यों न हो कि जिस के स्मरण मात्र से ही प्रेम आ जाए मन में. कि जिसका प्रादुर्भाव किसी विरोध की कोख से ना हुआ हो. वैसे तो हमारी परम्परा में पूरा बसंत ही प्रेम का प्रतिनिधित्व करता है. वासंती बयार और प्रेम में पगे हुए ना जाने कितनी ही कहानियां और गीत रचे गए हैं यहाँ. होली तो है ही प्रेम पर्व. फिर भी यदि प्रेम दिवस मनाने का मन है तो क्यों न शिवरात्रि को प्रेम दिवस माना जाय. शिव जिनके नाम से ही प्रेम का बोध हो जाता है. जिन्होंने प्रेम ही का संचार किया सम्पूर्ण जगत में. जो अपने भक्त के प्रेम में बसे तो उसके ही हो गए.
लेकिन अब ऐसा कहने में भी खतरा है. यह आधुनिक प्रेम दिवस घृणा का ऐसा मंजर तैयार कर चुका है कि इसकी चर्चा में प्रेम कम घृणा ज्यादा दिखती है. जैसे ही मैं कहता हूँ कि इसे मनाया जाना उद्देश्यविहीन है, तुरंत मुझे किसी संस्कृति के ठेकेदार से जोड़ कर देखा जाने लगेगा. तुरंत मुझे बजरंगी या शिवसैनिक घोषित कर दिया जायेगा. मैं उस वीभत्स विरोध का भी समर्थन नही करता, लेकिन इसको मनाये जाने के औचित्य पर प्रश्न जरूर खड़ा करता हूँ.
इस प्रेम दिवस पर 'कुछ' खरीदने से पहले एक बार प्रेम को जरूर याद कीजिये. क्या कहीं मन के किसी कोने में प्रेम शेष है?? और लगे कि हाँ प्रेम शेष है अभी जीवन में तो फिर इस प्रेम दिवस के औचित्य पर विचार जरूर कीजिये.
हैप्पी वेलेंटाइन डे.

- अमित तिवारी 
समाचार संपादक 
निर्माण संवाद
(09266377199) 
Related Posts Plugin for WordPress, Blogger...