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Sunday, December 3, 2017

उनके होठों पर लिखना (Beauty)



उनके होठों पर लिखना,
गालों पर लिख्नना।
उनके बलखाते काले
बालों पर लिखना।।
या कहना मुस्कान
कमल दल सी खिलती है।
उनकी सूरत, मोहिनी
मूरत से मिलती है।।
या कह दूं कि लब से
उनके शहद झरे है।
उनकी आंखों में दरिया,
सागर गहरे हैं।। 
उनके पायल की रुनझुन
में साज कई हैं।
उनकी गहरी आंखों में
भी राज कई हैं।। 
उनके कंगन, उनके
बिछुए, उनकी मेंहदी।
उनकी झुकती पलकों
में अंदाज कई हैं।। 
उनकी शोखी, हिरनी जैसी
चालों पर लिखना।  
उनके होठों पर लिखना,
गालों पर लिख्नना।। 

- अमित तिवारी 

Friday, April 17, 2015

बस इतना हो, अच्छा हो...(Real Dream)



उसको लिखना, उसको पढना,
उस पर किस्सागोई सी।
उसमे होना, जी भर रोना,
उसमे नींदे सोयी सी।।
उसको पाना, उसको खोना,
उस बिन पल पल कट जाना।
उसकी आड़ी तिरछी सब,
रेखाओं का रट जाना।।
उसका कहना, उसका रहना,
उसकी आँखों के मोती।
अब भी जान नहीं पाया,
बिन उसके साँसे कब होती।।
कह दूँ उसको छोड़ चुका हूँ,
फिर कैसे मैं जिंदा हूँ।
उसकी आँखें नम आखिर क्यूँ?
मैं अब भी शर्मिंदा हूँ।।
उसके वादे, उसके गीत,
उस चेहरे पर मेरी जीत।
उसकी खातिर सपने सारे,
उसकी खातिर सुर-संगीत।।
उसको सुनना, उसको गुनना,
उसकी धुन में खो जाना।
उसकी पलकों के साये में,
मेरे सपनों का सो जाना।।
उससे कह दूं दिल का किस्‍सा,
जैसा झूठा सच्‍चा हो।
वो हो, मैं हूं, बस कुछ सपने,
बस इतना हो, अच्‍छा हो...
बस इतना हो, अच्‍छा हो... 
- अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 

Wednesday, July 9, 2014

लड़की जैसी लड़की (Girl like a Girl)



'तन्‍मय, तू कुछ बोल क्‍यों नहीं रहा यार?' सौम्‍या ने झुंझलाते हुए कहा। तन्‍मय अब भी चुप था। 'तू आखिर मुझसे शादी क्‍यों नहीं करना चाहता? तू ही तो कहता है कि तू मुझसे बहुत प्‍यार करता है। मैं बहुत अच्‍छी हूं। तब आखिर हम शादी क्‍यों नहीं कर सकते?' कहते-कहते सौम्‍या रुआंसी हो गई। तन्‍मय, 'यार.... तू समझती क्‍यों नहीं? यू आर नॉट अ वाइफ मैटेरियल... अंडरस्‍टैंड दिस।'
सौम्‍या, 'मतलब... तू कहना क्‍या चाहता है?'
तन्‍मय, ' मैं सीधा ही तो बोल रहा हूं यार... तू अच्‍छी फ्रेंड है मेरी... मैं प्‍यार करता हूं तुझसे, लेकिन यू नो... तेरे अंदर वाइफ वाला मैटेरियल नहीं है। वो कहते हैं ना कि तुझमे वो लड़कियों वाली बात नहीं है।' तन्‍मय कहता रहा, 'वो... बस में सफर करते टाइम रुमाल से कभी होंठ, कभी माथे का पसीना पोंछना, शर्माना, पति का खाने पर इंतजार करना, साड़ी पहनकर इतराना... एंड सो ऑन...आई थिंक तू समझ रही है सौमी...'
तन्‍मय अपनी बात पूरी करके आइसक्रीम लेने चला गया था और सौम्‍या अब भी उसकी बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वहीं तन्‍मय है जिसने एक दिन सौम्‍या को रोता देखकर कहा था, 'क्‍या यार सौमी... तू ये लड़कियों की तरह रोया ना कर। यू नो तेरी सबसे अच्‍छी बात कौन सी है... तू और लड़कियों जैसी नहीं है... वो बेवजह रोना-धोना, इमोशनली ब्‍लैकमेल करना लड़कों को... यू आर डिफरेंट... और इसीलिए तो मैं तुझसे इतना प्‍यार करता हूं।' गर्लफ्रेंड और वाइफ का फर्क उसे अब समझ आने लगा था।

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण 

Tuesday, January 22, 2013

महबूब की तुलना चाँद से ही क्यों? चपाती से क्यों नहीं???(Why Moon)




जबसे होश संभाला, गानों को समझना शुरू किया, तभी से ये गाना भी सुनता आ रहा हूँ, 'चाँद सा रोशन चेहरा, जुल्फों........'. कभी-कभी ये भी सुनाई दे जाता,'चाँद सी हो महबूबा मेरी..'.

तब कुछ ख़ास समझ नहीं थी, 'महबूब और चाँद' के संबंधों के बारे में. हाँ कभी-कभी सोचता जरूर था, कि ये 'चंदा मामा' महबूब कैसे हो जाते हैं. उस वक़्त कन्हैया की ये हठ भी पढता था,'मैया मोहे चन्द्र खिलौना लैहो..'.
ये दोनों विरोधाभाषी बातें मन में कभी-कभी ही उठा करती थीं. जब तक छोटे थे 'चन्द्र-खिलौना' चला, फिर धीरे धीरे 'चाँद सी महबूबा' हो गयी....

समय के साथ-साथ ये प्रश्न मन में आने लगा, कि आखिर ये महबूबा चाँद जैसी ही क्यों है?
चाँद में वो कौन सी खासियत है, जिसकी वजह से उसे सुन्दरता के साथ जोड़ा जाने लगा..

चाँद गोल है, लेकिन गोल तो चपाती भी है. फिर चपाती जैसा चेहरा क्यों नहीं है??

फिर सोचा कि शायद चाँद रौशनी करता है, इसलिए ऐसा कहते होंगे, शायद इसीलिए उसे सुन्दरता का प्रतीक बना दिया गया. लेकिन रौशनी तो सूरज उससे बहुत ज्यादा करता है, तब फिर उसे क्यों नहीं माना गया?
और मान लो सूरज जलता है, लेकिन घर में जो CFL ट्यूब लाईट है, वो तो एकदम चाँद के जैसी रौशनी देता है, तब फिर लेटेस्ट वर्जन में सुन्दरता को CFL क्यों ना कहा जाए.??

फिर सोचा कि चाँद की शीतलता की बहुत चर्चा रहती है, क्या पता इसीलिए उसे सुन्दरता से तुलना करते हों! वैसे भी आजकल सुन्दरता भी आँखों को शीतल करने के काम आने लगी है...!! लेकिन 'बर्फ' तो उससे भी कहीं ज्यादा शीतल है, तब फिर बर्फ की तुलना क्यों ना की जाए सुन्दरता से??? फिर बर्फ तो सफ़ेद भी होता है, एकदम उजला-धप्प..

कोई भी तर्क संतुष्टि नहीं दे पाया. सब के सब यही साबित करते रहे, कि चाँद में ऐसा कुछ खास नहीं है. वो तो बस पुराने कवियों ने कहा, तब से सब लकीर के फ़कीर बने उसी लीक पर चलते जा रहे हैं.

लेकिन ऐसा नहीं है. चाँद में ऐसी ही एक बात है, जो उसके चरित्र को सुन्दरता के चरित्र के पास ले आती है.
चाँद जब पूर्ण हो जाता है, तब उसमे ह्रास होने लगता है. चाँद की सम्पूर्णता ही उसके क्षरण का प्रारंभ बिंदु है. जिस दिन चाँद पूरा हो जाता है, बस अगले ही दिन से वह घटने लगता है.

यही चरित्र सुन्दरता का भी है. जब सुन्दरता पूर्ण हो जाती है, तभी उसमे ह्रास शुरू हो जाता है. सुन्दरता भी चाँद की कलाओं की तरह बढती है, और फिर पूर्ण होते ही उसका भी क्षरण शुरू हो जाता है. पूर्ण सौंदर्य स्थिर नहीं होता...और पूर्ण चन्द्र भी स्थिर नहीं रहता.. जैसे चाँद का आकर्षण उसकी अपूर्णता में है, क्योंकि तारीफ भी 'चौदहवी के चाँद' की या फिर 'चौथ के चंदा' की होती है, कोई पूर्णिमा के चाँद सी महबूबा नहीं खोजता... उसी तरह सौंदर्य का आकर्षण भी उसकी अपूर्णता में ही है.

यही चरित्र फूल का भी है, उसका सारा आकर्षण उसके खिलने की प्रक्रिया में है. जिस दिन वह पूरा खिल जाता है, मुरझाना शुरू हो जाता है. इसीलिए 'फूलों सा चेहरा तेरा..' है. वरना खुशबू तो 'ब्रीज' साबुन में 17 सेंटों की है.
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