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Wednesday, September 22, 2010

वो अजन्‍मी मां थी....





22  सितम्बर 2025 , दैनिक भास्कर- मानव जाति खतरे में, दैनिक जागरण- स्त्री संख्या शून्य की ओर, हिंदुस्तान टाइम्स - अब नही मिलेंगी दुल्हनें... 
जी हाँ, चौंकिए मत, मैं कोई समाचार वाचन का अभिनय करने के लिए आपके सामने उपस्थित नहीं हुआ हूँ. और ना ही यह सब किसी नाटक की लिखित पंक्तियाँ... यह सब भविष्य है हमारे इस वर्तमान का... जिस गति से हमारा वर्तमान चल रहा है, क्या आप सबको नहीं लगता कि हम सबको निकट भविष्य में ऐसा ही कुछ पढने देखने को मिलेगा.  
आंकड़े कुछ ऐसा ही कहते हैं.. पिछले कुछ वर्षों में जिस गति से कन्या भ्रूण हत्याओं के मामले बढे हैं, उसका भविष्य तो ऐसे ही किसी समाचार में सिमटा हुआ लगता है. संयुक्त राष्ट्र संघ के एक सर्वक्षण के अनुसार पिछले बीस वर्षों में हिंदुस्तान में 1 करोंड़ से अधिक कन्याओं की भ्रूण में ही हत्या कर दी गयी है. यानि औसतन हर साल पांच लाख कन्या भ्रूण  हत्याएं. 
आंकड़े बताते हैं कि 1981  में  भारत में लिंग अनुपात  प्रति हज़ार पुरुषों पर 960 लड़कियों का था, जो 1991 में 945  तथा 2001 की जनगणना में 927 हो गया. इसमें हरियाणा और पंजाब की स्थिति और भी अधिक शोचनीय है. हरियाणा में यह दर 860 तथा पंजाब के कुछ हिस्सों में तो 780 तक पहुँच गयी है. यह भी कहा जा सकता है कि हरियाणा पंजाब के हाथ लड़कियों के खून से रंगे हैं. 
अस्सी के दशक में जब भ्रूण में पल रहे शिशु के स्वास्थ्य को जान सकने और संभावित बिमारियों को दूर करने का तरीका इजाद हुआ था, उस वक़्त यह  तकनीक एक क्रांतिकारी लहर बन कर उभरी थी. लेकिन किसको पता था कि खाली दिमाग शैतान का घर.... जिस ब्लेड का अविष्कार दाढ़ी बनाने के लिए किया गया, उसका इस्तेमाल लोगों की जेबें तराशने में किया जाने लगा.. ऐसी ही परिणति इस क्रांति की भी हुई. इस खोज के साथ ही माता-पिता के लिए गर्भ में पल रहे बच्चे का लिंग पता करना और कन्या होने कि स्थिति में उसे मार डालना और भी आसान हो गया. आज लगभग 22000 ऐसे केंद्र अस्तित्व में हैं जहाँ इस प्रकार की जाँच तथा सुविधा उपलब्ध है. 30000  से अधिक डॉ. पैसे के लालच में इस पेशे से जुड़े हुए हैं. जान बचाने वाला डॉ. आज एक हत्यारे से अधिक कुछ भी नहीं रहा. धरती पर भगवान् का रूप माने जाने वाले माता-पिता अपने ही अंश को धरती पर आने से पहले महज इसलिए मार डालते हैं कि वह एक लड़की है. 
तिस पर भी  हम बड़ी-बड़ी महिला सशक्तिकरण की बातें करते हैं.. लम्बे-लम्बे भाषण स्त्रियों की मुक्ति और शक्ति के लिए देते हैं. जिस वक्त हम किसी वातानुकूलित से भव्य पंडाल में स्त्री मुक्ति के खोखले दावों के लिए चिल्ला रहे होते हैं... ठीक उसी वक़्त किसी अस्पताल के एक वातानुकूलित से कक्ष में एक भ्रूण को महज इसलिए गर्भ और इस दुनिया से मुक्त किया जा रहा होता है क्यूंकि वह एक कन्या है. ...  आज महिलाएं पुरुषों के कंधे से कन्धा मिलाकर चल रही हैं, लड़कियां हर क्षेत्र में तरक्की कर रही हैं.. आगे बढ़ रही हैं.. मैं कहता  हूँ, यह स्वीकारता हूँ कि लड़कियां आगे हैं... आगे रहेंगी... लेकिन लेकिन स्‍वयं से मेंरा जो प्रश्‍न है वह यही है कि क्या आगे लड़कियां रहेंगी????
जिस गति से आज हमारे समाज में कन्या भ्रूण हत्या के मामले बढ़ रहे हैं... शायद तो आगे लड़कियां नहीं ही रहेंगी.. और  जैसा  कि हम सबको समझाया  जाता  है कि समाज स्त्री  पुरुष  के मेल से ही संभव है. दुनिया की गाड़ी स्त्री पुरुष नाम के दोनों पहियों के संतुलन से ही चलता है.. क्या एक पहिये पर यह समाज चल पायेगा.. 
विज्ञान सब कुछ तो बना सकता है.. लेकिन हमें नहीं भूलना चाहिए कि विज्ञानं माँ नहीं बना सकता... आज की बेटी ही कल की माँ होगी.. 
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Amit Tiwari
News Editor
Nirman Samvad
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