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Friday, October 15, 2010

आज तीन दिन के बाद...



यहाँ का हर फूल गूंगा क्यूँ है?
मेरी अंगूठी में उदास मूंगा क्यूँ है?
वो पंछी क्यूँ रो रहा है?
उसके दिल में क्या हो रहा है?
दाना- लाना- चुगना- खाना
और फिर रात के होने का इंतजार
यह सब कुछ पहले कभी नहीं सोचा..
जो सोचा आज तीन दिन के बाद..

सांझ में इतनी उदासी क्यूँ है?
हर सुबह इतनी बासी क्यों है?
दिन ढलना, सांझ होना,
बेवजह हँसना, बेवजह रोना.
यह सब कुछ पहले कभी नहीं सोचा..
जो सोचा आज तीन दिन के बाद..

अहा! खारे पानी की वो मिठास
सख्त दाढ़ी की छुवन का वो एहसास
मैंने कभी समन्दर नहीं देखा..
कभी उस दिल को छूकर नहीं देखा
ये सब कुछ मैंने पहले तो कभी नहीं सोचा
जो सोचा है मैंने आज तीन दिन के बाद

हाँ मैंने सोचा है ये सब आज...
जब सुनी है पिता की आवाज
आज तीन दिन के बाद.......

-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद


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