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Thursday, February 24, 2011

क्या लिखूं ? (Nothing remains...)


सोचता हूँ क्या लिखूं, कोई बात बाकी नहीं.
यादों के झरोखों में, कोई हालात बाकी नहीं.
मौत की शुरुआत लिखूं,
या जिंदगी का अंत.....
खुशनुमा पतझर लिखूं
या उजड़ा हुआ बसंत....
बहार के कांटे लिखूं.....
या पतझर के फूल.........
झूठ का आईना लिखूं
या चेहरे की धूल........
इतने दर्द झेल लिए हैं, मेरी कलम ने
अब इसके खून में, कोई जज्बात बाक़ी नहीं.
सोचता हूँ क्या लिखूं..................................

दिल का वही दर्द लिखूं
या बेदर्द दुनिया.....
बेगरज आंसू लिखूं
या खुदगर्ज दुनिया.......
वक़्त के थप्पड़ लिखूं
या गाल अपने...........
मायूस आँखें लिखूं
या हलाल सपने........
कैसे करूँ जिंदगी में सवेरे का इंतजार...
अब तो जिंदगी में कोई रात बाकी नहीं...
सोचता हूँ क्या लिखूं.............................

ख्वाबों की दास्ताँ लिखूं,
या कत्ल सपनों के .....
गैरों के हमले लिखूं, या
कातिल शक्ल अपनों के
भीड़ का मातम लिखूं या
खामोशियों का शोर......
मरहमों के जख्म लिखूं
या जख्मों के चोर........
जख्म के फूल भी कैसे खिले चेहरे पर.....
आंसुओं की भी कोई बरसात बाकी नहीं...
सोचता हूँ क्या लिखूं................................

बुझता हुआ चिराग लिखूं
या आंधी का हौसला.....
गुजरती हुई साँसे लिखूं,
या मौत का फैसला.......
खुशियों का जनाजा लिखूं
या ग़मों की बारात...........
सोचता हूँ आज, मैं
लिखूं कौन सी बात........
'संघर्ष' कब्र में कैसी शहनाई की तमन्ना..
अब तो मौत की भी बारात बाकी नहीं.....
सोचता हूँ क्या लिखूं...............................

-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद 

Wednesday, October 13, 2010

आज फिर कुछ लिखने की रुत आई है...


आज फिर कुछ लिखने की रुत आई है,
आज फिर से ख्वाबों में तन्हाई है।
रिश्तों के तार फिर ख़ामोशी से गुनगुनाये,
दर्द के पोरों से कुछ गम मुस्कुराए।
कुछ नए ज़ज्बात, कुछ पल हैं नए,
कुछ पुराने साज दिल ने फिर सजाये।।
फिर बजी वो यादों की शहनाई है,
आज फिर से ख्वाबों में तन्हाई है। 


फिर वही पल हैं सुनहरे याद आये,
फिर वही सपने हैं पलकों में सजाये।
फिर वही हँसना-मनाना-रूठ जाना,
फिर वही निष्काम चंचल सी अदाएं।।
आज फिर से दिल ने वही नज़्म गाई है,
आज फिर से ख्वाबों में तन्हाई है।

फिर वही हलचल पुरानी, पल नए हैं,
हैं पुराने आज, लेकिन कल नए हैं।
फिर कोई इतना क्यों दिल पे छाया-छाया,
फिर वही खुशबू, मगर संदल नए हैं।।
आज फिर साँसे गुलाबी रंग लाई हैं,
आज फिर से ख्वाबों में तन्हाई है।



-अमित तिवारी 
समाचार संपादक
निर्माण संवाद


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