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Sunday, December 3, 2017

उनके होठों पर लिखना (Beauty)



उनके होठों पर लिखना,
गालों पर लिख्नना।
उनके बलखाते काले
बालों पर लिखना।।
या कहना मुस्कान
कमल दल सी खिलती है।
उनकी सूरत, मोहिनी
मूरत से मिलती है।।
या कह दूं कि लब से
उनके शहद झरे है।
उनकी आंखों में दरिया,
सागर गहरे हैं।। 
उनके पायल की रुनझुन
में साज कई हैं।
उनकी गहरी आंखों में
भी राज कई हैं।। 
उनके कंगन, उनके
बिछुए, उनकी मेंहदी।
उनकी झुकती पलकों
में अंदाज कई हैं।। 
उनकी शोखी, हिरनी जैसी
चालों पर लिखना।  
उनके होठों पर लिखना,
गालों पर लिख्नना।। 

- अमित तिवारी 

Monday, November 20, 2017

मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो (You make me)




मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो 
मैं दीप हूं, तुम दीप्ति हो।
मैं दिवस और भोर तुम 
हो मेरे चित की चोर तुम।
मैं अग्नि हूं, तुम तपन हो 
मैं नींद हूं, तुम स्वप्न हो। 
मैं इमारत, नींव तुम 
मैं आत्म हूं और जीव तुम। 
मैं नेत्र हूं, तुम दृष्टि हो 
मैं मेघ हूं, तुम वृष्टि हो।
मैं साधु हूं, तुम साधना
मैं भक्ति, तुम आराधना..
मैं समंदर, तुम नदी हो
मैं हूं पल छिन, तुम सदी हो
मैं ब्रह्म हूं, तुम सृष्टि हो
मैं प्यास हूं, तुम तृप्ति हो..

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण

(चित्र गूगल से साभार)

Saturday, April 18, 2015

बहुत अब हो गया (Its Enough)



बहुत अब हो गया किस्सा
मनाने रूठ जाने का।
फकत अब वक़्त आया है
किसी ताज़ा बहाने का।।
हमीं से अब छुपाते हो 
तुम अपने दिल की लाचारी।
कि अब तो छोड़ भी दो तुम 
ये किस्‍सा आजमाने का।।
किसी के साथ हंसने का
तरीका अब पुराना है।
कोई देखो तरीका तुम
नया दिल काे जलाने का।।
तुम्‍हें तितली कहूं, या फूल 
या गुल या कहूं गुलशन।
तुम्‍हीं कह दो तरीका अब
खुद ही तुमको बुलाने का।।
अब तुम भूल जाओ वो 
तुम्‍हारी याद में रोना।
कि गुजरा वक्‍त है अब 
वक्‍त वो आंसू बहाने का।।
चमकता चांद जो देखा है 
तुमने आसमां में कल।
उसी से ये हुनर सीखा है
दाग अपने दिखाने का।।

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 

Friday, April 17, 2015

बस इतना हो, अच्छा हो...(Real Dream)



उसको लिखना, उसको पढना,
उस पर किस्सागोई सी।
उसमे होना, जी भर रोना,
उसमे नींदे सोयी सी।।
उसको पाना, उसको खोना,
उस बिन पल पल कट जाना।
उसकी आड़ी तिरछी सब,
रेखाओं का रट जाना।।
उसका कहना, उसका रहना,
उसकी आँखों के मोती।
अब भी जान नहीं पाया,
बिन उसके साँसे कब होती।।
कह दूँ उसको छोड़ चुका हूँ,
फिर कैसे मैं जिंदा हूँ।
उसकी आँखें नम आखिर क्यूँ?
मैं अब भी शर्मिंदा हूँ।।
उसके वादे, उसके गीत,
उस चेहरे पर मेरी जीत।
उसकी खातिर सपने सारे,
उसकी खातिर सुर-संगीत।।
उसको सुनना, उसको गुनना,
उसकी धुन में खो जाना।
उसकी पलकों के साये में,
मेरे सपनों का सो जाना।।
उससे कह दूं दिल का किस्‍सा,
जैसा झूठा सच्‍चा हो।
वो हो, मैं हूं, बस कुछ सपने,
बस इतना हो, अच्‍छा हो...
बस इतना हो, अच्‍छा हो... 
- अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 

Friday, February 20, 2015

बही लिखना, सनद लिखना (My Love)



बही लिखना, सनद लिखना
मेरी चाहत का कद लिखना।
मेरी बातों को तुम कीकर
और अपने लब शहद लिखना।।
..................
तुम्हें पाना नहीं फिर भी
तुम्हारी याद में खोना।
तुम्हारे ख्वाब में जगना
तुम्हारी नींद में सोना।।
मगर फिर हर घड़ी मुंह
फेरकर वो बैठ जाने की।
तुम अपनी बेरुखी लिखना और
मेरी जिद की हद लिखना।।
...........
न जाने प्यार था, व्यापार था
लाचार था ये मन।
उधर संसार था, इस पार था
बेकार सा जीवन।।
कभी बैठो कलम लेकर
जो मन के तार पर लिखने।
वो स्वप्‍नों के बही खाते
वो साखी, वो सबद लिखना।।
..............
कहां मैं सीख पाया था
वो शब्दों के महल बोना।
असल था प्यार वो मेरा
था जिसके ब्याज में रोना।।
किताबों में कभी लिखना
हिसाब अपने गुनाहों का।
बहे जो ब्याज में आंसू
वो सब के सब नकद लिखना।।
बही लिखना सनद लिखना...

-अमित तिवारी
दैनिक जागरण 

Saturday, February 14, 2015

नवजीवन मिल जाए (Priytama)



अधरों का चुंबन मिल जाए
मुझको नवजीवन मिल जाए
अंतर्मन के इन भावों को 
तेरा अभिनंदन मिल जाए
.......
मिल जाए तुझसे मिलने का 
पलभर का किस्‍सा जीवन में 
भावों का सागर सिमटेगा 
पलभर तेरे आलिंगन में 
... ....
आलिंगन में भरकर तुझको 
फिर जीवन तट छूटे तो क्‍या 
सांसों में जब तू बस जाए 
फिर सांसों की लट टूटे तो क्‍या 
....... 
तो क्‍या गर टूटे स्‍वप्‍न सभी 
जीवन के मरु सागर में 
इक प्रेम सुधा की बूंद भली 
स्‍वप्‍नों के छोटे गागर में 
....... 
गागर ये तेरे स्‍वप्‍नों का
उस क्षीर सिंधु सा पावन है
वो पल जो तुझमें बीता है 
वो पल सबसे मनभावन है 
.....
मनभावन है मन में तेरा 
आना, जाना, जगना, सोना 
जीवन का सारा सत्‍य यही
तेरा होना, मेरा होना 
.........

-अमित तिवारी 
दैनिक जागरण 

Sunday, August 10, 2014

गगन जैसी बहन मेरी (Sister Vs Sky)




लिखना बहन पर
या लिखना गगन पर
दोनों ही मुश्किल है...
गगन नीला है क्‍यों?
क्‍यों उसके हाथ चंदन?
गगन का छोर क्‍या है?
क्‍यों उसके शब्‍द वंदन?
वो ऐसा है तो क्‍यों है ?
ये ऐसी है तो क्‍यों है?
गगन सब देखता है!
बहन सब जानती है!
गगन बन छत्र छाए!
बहन आंसू सुखाए!
गगन में चांद तारे!
उस आंचल में सितारे!
ना उसका अंत कोई!
ना इसका छोर कोई!
धरा पर ज्‍यों गगन है!
बस ऐसे ही बहन है!

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण

Wednesday, August 6, 2014

टेलीफोनिक ब्रेकअप (Telephonic braekup)



तन्‍मय का फोन उठाते ही सौम्‍या चिल्‍लाई, 'तू पागल है क्‍या... अकल है कि नहीं...'
तन्‍मय ने चौंकते हुए पूछा, 'क्‍यू... अब क्‍या हुआ?'
सौम्‍या, 'क्‍या हुआ क्‍या... तेरी वजह से कितना बवाल हुआ आज। जब मन करे मुंह उठाकर फोन मिला देता है। कोई टाइम भी तो होना चाहिए...'
तन्‍मय, 'लेकिन हुआ क्‍या? कुछ बता तो।'
सौम्‍या ने बिफरते हुए कहा, 'कुछ नहीं हुआ... जब देखो तब तेरा फोन... भाई ने कितना सुनाया आज... मुझे फोन मत करियो अब कभी जब तक मैं ना करूं... समझा?'
तन्‍मय ने उदासी से कहा, 'समझा तो नहीं... लेकिन कर भी क्‍या सकता हूं...'
सौम्‍या ने खीझते हुए कहा, 'नहीं समझेगा तो नंबर बदल दूंगी। फिर मिलाता रहियो।'
तन्‍मय हुंकारी भरकर चुप हो गया। सौम्‍या ने फोन काट दिया।
कुछ दिन पहले ही सौम्‍या ने कहा था, 'तू मेरा इंतजार ना किया कर। मेरे इंतजार में रहेगा तो कभी बात नहीं होगी... बहुत बिजी हूं मैं। तू खुद ही कर लिया कर फोन।'
फिलहाल तन्‍मय अपने लेटेस्‍ट टेलीफोनिक ब्रेकअप के सदमे में है। सौम्‍या का पता नहीं... अभी तो दो ही दिन हुए हैं। वैसे भी सौम्‍या कहती है कि उसे तो हफ्ते भर किसी की याद नहीं आती।

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण


Tuesday, August 5, 2014

पागल वाला प्यार (mad love)




'क्या यार... तू हमेशा ये लव यू, लव यू ना कहा कर। कोफ्त होने लगती है', सौम्या ने कहा।
तन्मय, 'तुझसे तो मेरा प्यार भी नहीं पचता..., मैं क्या करूं।'
सौम्या, 'मुझसे नहीं झेला जाता इतना प्यार-व्यार किसी का भी। और तू भी ना इतना प्यार मत किया कर मुझसे। किसी दिन गुस्सा आ गया तो छोड़ दूंगी तुझे भी। फिर रोता रहियो अपना प्यार लेके।'
तन्मय, 'हां, तुझे क्या फर्क पड़ता है। लेकिन मैं क्या करूं, मुझे तोे तेरे गुस्से पर भी प्यार ही आता है।' 
सौम्या, 'ओह... डायलॉग...'
तन्मय, 'डॉयलॉग नहीं यार... सच में। तुझे बहुत प्यार करता हूं। तेरे-मेरे रिश्ते में, मेरे पास है भी क्या? गुस्सा, चा‍हत, जरूरत, इच्छा... सब तेरे ही तो हैं... मेरे पास बस मेरा ये प्यार ही तो है। जब नहीं रहूंगा पास, तब तुझे याद आएगी। और मैं तो ये भी नहीं कह सकता कि तुझे छोड़ जाउंगा। मेरे बस का तो ये भी नहीं है। फैसला करने का तो अधिकार तेरे पास है।'
सौम्या, 'चल पागल... इमोशनल ना हो...। बाद में बात करती हूं।'
सौम्या ने खिलखिलाहट के साथ फोन काट दिया।
तन्मय अब भी अपने पागलपन पर हंस रहा है।

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण 

Friday, July 25, 2014

नहीं मंजूर है तुझे खोना (never like to miss you)



तेरा चेहरा, तेरी आंखें
तेरे होठों की चहक।
तेरा हंसना तेरा गाना
तेरे कंगने की खनक।।

तेरे पैरों की महावर
तेरे बिछुए तेरी पायल।
तेरे बालों का वो गजरा
तेरी मेंहदी से दिल घायल।।

तेरे फूलों से लब खिलना
तेरे छूने की वो नरमी।
दुखों के सर्द मौसम में
तेरी सांसों की वो गरमी।।

तेरी बातें तेरा हंसना
तेरा दिखना तेरा होना।
मुझे मंजूर है सब कुछ
नहीं मंजूर है खोना।।

- अमित तिवारी
सीनियर सब-एडिटर
दैनिक जागरण

Wednesday, July 9, 2014

लड़की जैसी लड़की (Girl like a Girl)



'तन्‍मय, तू कुछ बोल क्‍यों नहीं रहा यार?' सौम्‍या ने झुंझलाते हुए कहा। तन्‍मय अब भी चुप था। 'तू आखिर मुझसे शादी क्‍यों नहीं करना चाहता? तू ही तो कहता है कि तू मुझसे बहुत प्‍यार करता है। मैं बहुत अच्‍छी हूं। तब आखिर हम शादी क्‍यों नहीं कर सकते?' कहते-कहते सौम्‍या रुआंसी हो गई। तन्‍मय, 'यार.... तू समझती क्‍यों नहीं? यू आर नॉट अ वाइफ मैटेरियल... अंडरस्‍टैंड दिस।'
सौम्‍या, 'मतलब... तू कहना क्‍या चाहता है?'
तन्‍मय, ' मैं सीधा ही तो बोल रहा हूं यार... तू अच्‍छी फ्रेंड है मेरी... मैं प्‍यार करता हूं तुझसे, लेकिन यू नो... तेरे अंदर वाइफ वाला मैटेरियल नहीं है। वो कहते हैं ना कि तुझमे वो लड़कियों वाली बात नहीं है।' तन्‍मय कहता रहा, 'वो... बस में सफर करते टाइम रुमाल से कभी होंठ, कभी माथे का पसीना पोंछना, शर्माना, पति का खाने पर इंतजार करना, साड़ी पहनकर इतराना... एंड सो ऑन...आई थिंक तू समझ रही है सौमी...'
तन्‍मय अपनी बात पूरी करके आइसक्रीम लेने चला गया था और सौम्‍या अब भी उसकी बातों का मतलब समझने की कोशिश कर रही थी। उसे यकीन नहीं हो रहा था कि ये वहीं तन्‍मय है जिसने एक दिन सौम्‍या को रोता देखकर कहा था, 'क्‍या यार सौमी... तू ये लड़कियों की तरह रोया ना कर। यू नो तेरी सबसे अच्‍छी बात कौन सी है... तू और लड़कियों जैसी नहीं है... वो बेवजह रोना-धोना, इमोशनली ब्‍लैकमेल करना लड़कों को... यू आर डिफरेंट... और इसीलिए तो मैं तुझसे इतना प्‍यार करता हूं।' गर्लफ्रेंड और वाइफ का फर्क उसे अब समझ आने लगा था।

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण 

Tuesday, June 3, 2014

खामोशी का अर्थ नहीं हम उनको भूल गए (Can't Forget)



खामोशी का अर्थ नहीं,
हम उनको भूल गए..
उन्होंने कैसे सोच लिया,
कि बागों से फूल गए..

कुछ रिश्ते ऐसे होते हैं,
जो टूट नहीं सकते...
कुछ दामन ऐसे होते हैं,
जो छूट नहीं सकते..

कुछ लम्हे ऐसे होते हैं,
जो जीवन बन जाते हैं...
कुछ पल ऐसे हैं, जिनको
ये पल लूट नहीं सकते..

कुछ नजरें ऐसी होती हैं,
जो नजरों में उतर जाती हैं..
कभी-कभी कुछ बातें
दिल में, घर कर जाती हैं..

कभी किसी का आना भी,
तनहा कर जाता है..
कभी किसी की यादें दिल
में खुशियाँ भर जाती हैं...

ब्याज तो हर इक रिश्ते
का हम चुकता कर आये...
लेकिन शायद लगता है
हम बिन मूल गए..

खामोशी का अर्थ नहीं,
हम उनको भूल गए..

- अमित तिवारी
दैनिक जागरण

Monday, May 12, 2014

तुम ही तो हो (Priytama)



कभी तुमसे कहा तो नहीं,
कि तुम ही मेरा जीवन हो।
मेरी खुशियों की तुलसी का,
एक तुम ही तो आँगन हो।।
तुम्हें पाना है जग पाना,
तुम्हारा प्यार धड़कन है।
इसी में बंध के जीना है,
ये वो प्यारा सा बन्धन है।।
नहीं दुख सुख की बातें हैं,
कि जो है प्यार ही तो है।
तुम्हारी बांह में सिमटा,
मेरा संसार ही तो है।।
तुम्हारा हूँ तो खुद का हूँ,
तुम्ही से आस पलती है।
लो मैने कह दिया तुमसे,
तुम्ही से सांस चलती है।।

- अमित तिवारी
सीनियर सब एडिटर
दैनिक जागरण

Tuesday, July 2, 2013

उसका होना, मेरा होना (uska hona)




उसको पाना, उसको खोना,
उस संग हँसना, उस बिन रोना,
उसकी बातें, झिलमिल रातें,
उसकी वो प्यारी सौगातें,
उसका गुस्सा, उसका प्यार,
उसकी जीत उससे हार
क्या-क्या गुजरे, कैसे बीते
जीवन घट ये घुट-घुट रीते,
जीवन सारा उसका हिस्सा,
हर पन्ने पर उसका किस्सा,
कैसे किस्से छोड़ चलूँ,
कैसे मैं मुंह मोड़ चलूँ,
कैसे मैं बदलूं ये सच,
कैसे रिश्ता तोड़ चलूँ
उसका होना, मेरा होना,
उसमे जगना, उसमे सोना,
उसको भी महसूस तो होगा,
अपने दिल में मेरा होना...

अमित तिवारी
बिज़नेस भास्कर
(चित्र गूगल से साभार)

Tuesday, January 22, 2013

महबूब की तुलना चाँद से ही क्यों? चपाती से क्यों नहीं???(Why Moon)




जबसे होश संभाला, गानों को समझना शुरू किया, तभी से ये गाना भी सुनता आ रहा हूँ, 'चाँद सा रोशन चेहरा, जुल्फों........'. कभी-कभी ये भी सुनाई दे जाता,'चाँद सी हो महबूबा मेरी..'.

तब कुछ ख़ास समझ नहीं थी, 'महबूब और चाँद' के संबंधों के बारे में. हाँ कभी-कभी सोचता जरूर था, कि ये 'चंदा मामा' महबूब कैसे हो जाते हैं. उस वक़्त कन्हैया की ये हठ भी पढता था,'मैया मोहे चन्द्र खिलौना लैहो..'.
ये दोनों विरोधाभाषी बातें मन में कभी-कभी ही उठा करती थीं. जब तक छोटे थे 'चन्द्र-खिलौना' चला, फिर धीरे धीरे 'चाँद सी महबूबा' हो गयी....

समय के साथ-साथ ये प्रश्न मन में आने लगा, कि आखिर ये महबूबा चाँद जैसी ही क्यों है?
चाँद में वो कौन सी खासियत है, जिसकी वजह से उसे सुन्दरता के साथ जोड़ा जाने लगा..

चाँद गोल है, लेकिन गोल तो चपाती भी है. फिर चपाती जैसा चेहरा क्यों नहीं है??

फिर सोचा कि शायद चाँद रौशनी करता है, इसलिए ऐसा कहते होंगे, शायद इसीलिए उसे सुन्दरता का प्रतीक बना दिया गया. लेकिन रौशनी तो सूरज उससे बहुत ज्यादा करता है, तब फिर उसे क्यों नहीं माना गया?
और मान लो सूरज जलता है, लेकिन घर में जो CFL ट्यूब लाईट है, वो तो एकदम चाँद के जैसी रौशनी देता है, तब फिर लेटेस्ट वर्जन में सुन्दरता को CFL क्यों ना कहा जाए.??

फिर सोचा कि चाँद की शीतलता की बहुत चर्चा रहती है, क्या पता इसीलिए उसे सुन्दरता से तुलना करते हों! वैसे भी आजकल सुन्दरता भी आँखों को शीतल करने के काम आने लगी है...!! लेकिन 'बर्फ' तो उससे भी कहीं ज्यादा शीतल है, तब फिर बर्फ की तुलना क्यों ना की जाए सुन्दरता से??? फिर बर्फ तो सफ़ेद भी होता है, एकदम उजला-धप्प..

कोई भी तर्क संतुष्टि नहीं दे पाया. सब के सब यही साबित करते रहे, कि चाँद में ऐसा कुछ खास नहीं है. वो तो बस पुराने कवियों ने कहा, तब से सब लकीर के फ़कीर बने उसी लीक पर चलते जा रहे हैं.

लेकिन ऐसा नहीं है. चाँद में ऐसी ही एक बात है, जो उसके चरित्र को सुन्दरता के चरित्र के पास ले आती है.
चाँद जब पूर्ण हो जाता है, तब उसमे ह्रास होने लगता है. चाँद की सम्पूर्णता ही उसके क्षरण का प्रारंभ बिंदु है. जिस दिन चाँद पूरा हो जाता है, बस अगले ही दिन से वह घटने लगता है.

यही चरित्र सुन्दरता का भी है. जब सुन्दरता पूर्ण हो जाती है, तभी उसमे ह्रास शुरू हो जाता है. सुन्दरता भी चाँद की कलाओं की तरह बढती है, और फिर पूर्ण होते ही उसका भी क्षरण शुरू हो जाता है. पूर्ण सौंदर्य स्थिर नहीं होता...और पूर्ण चन्द्र भी स्थिर नहीं रहता.. जैसे चाँद का आकर्षण उसकी अपूर्णता में है, क्योंकि तारीफ भी 'चौदहवी के चाँद' की या फिर 'चौथ के चंदा' की होती है, कोई पूर्णिमा के चाँद सी महबूबा नहीं खोजता... उसी तरह सौंदर्य का आकर्षण भी उसकी अपूर्णता में ही है.

यही चरित्र फूल का भी है, उसका सारा आकर्षण उसके खिलने की प्रक्रिया में है. जिस दिन वह पूरा खिल जाता है, मुरझाना शुरू हो जाता है. इसीलिए 'फूलों सा चेहरा तेरा..' है. वरना खुशबू तो 'ब्रीज' साबुन में 17 सेंटों की है.

Friday, April 8, 2011

दिल फिर भी जीत नहीं पाए (Still alone..!)



गीत, ग़ज़ल, कविताई करके
जीवन जीत नहीं पाए..
हार गए सब लफ्ज़ मगर
दिल फिर भी जीत नहीं पाए

वो कब जीते, हम कब हारे..
कब टूटे सपनो के तारे ?
कब हमने उनसे सत्य कहा
कब झूठ समझ पाए सारे ?
पल-पल कर जीवन रीत गया..
पर सपने रीत नहीं पाए..
दिल फिर भी जीत नहीं पाए..

दिल की बातें जंग हुईं कब.. 
तसवीरें बदरंग हुईं कब ?
कब हँसना-खिलना छूट गया..
नम आँखें अपने संग हुईं कब ?
हर किस्सा हमने कह डाला..
लेकिन वो गीत नहीं गाये..
दिल फिर भी जीत नहीं पाए...


- अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद

(तस्वीर गूगल सर्च से साभार )

Friday, March 11, 2011

प्रेम क्या है? (what is Love?)



प्रेम क्या है?
एक छोटा सा प्रश्न लेकिन अनेक उत्तर. एक ऐसा प्रश्न जिसके लिए हर किसी के पास अपना एक अलग उत्तर है. जिस जिस से पूछा जाए वह इसके लिए कुछ अलग उत्तर दे देता है. सबकी अपनी परिभाषाएं हैं प्रेम को लेकर. बहुत बार बहुत सी विरोधाभाषी परिभाषाएं भी.
मैं सोच रहा हूँ कि क्या प्रेम वास्तव में ऐसा है कि जिसकी कोई नियत परिभाषा ही नहीं बन पायी है. क्या प्रेम सचमुच ही ऐसा है कि इसका स्वरुप देश-काल और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तित होता रहता है? क्या प्रेम का अपना कोई स्वरुप, अपनी कोई पहचान नहीं है?
क्या वास्तव में लोगों की भावनाओं के अनुरूप रूप ग्रहण कर लेना ही प्रेम का स्वरुप है? क्या प्रेम व्यक्तिगत या वस्तुगत हो सकता है? जिसके नाम पर हर रोज़ इतनी घृणा फैलाई जा रही है, क्या वही प्रेम है? क्या प्रेम महज एक दैहिक अभिव्यक्ति से अधिक कुछ भी नहीं? क्या किसी विपरितलिंगी के प्रति मन में उठ रही भावनाएं ही प्रेम हैं?
कदापि नहीं !!!
यह जो कुछ भी है वह प्रेम नहीं हो सकता. वह प्रेम हो ही नहीं सकता कि जो लोगों की भावनाओं के अनुरूप रूप ले लेता हो. वह प्रेम कदापि नहीं हो सकता है जिसके मूल में ही घृणा पल रही हो. प्रेम तो स्वयं एक सम्पूर्ण भाव है. प्रेम किसी के चरित्र का हिस्सा नहीं वरन स्वयं में एक पूर्ण चरित्र है.
प्रेम तो कृष्ण है, वह कृष्ण जिसके पाश में बंधकर गोपियाँ-ग्वाले और गायें सब के सब चले आते हैं.
प्रेम तो राम है, वह राम जिसके पाश में कोल-किरात भील सभी बंधे हुए हैं.
प्रेम तो ईसा है, वह ईसा जो मरते समय भी अपने मारने वालों के लिए जीवनदान की प्रार्थना करता है.
प्रेम बुद्ध है, वह बुद्ध जिसकी सैकड़ों साल पुरानी प्रतिमा भी करुणा बरसाती सी लगती है.
प्रेम बस प्रेम है.
प्रेम पुष्प की वह सुगंध है, जो बिना किसी भेद के सबको आह्लादित कर दे. प्रेम की गति सरल रेखीय नहीं है. प्रेम का पथ वर्तुल है. वह अपनी परिधि में आने वाले हर जीव को अपनी सुगंध से भर देता है. प्रेम करने का नहीं, वरन होने का भाव है. प्रेम स्वयं में होता है. प्रेम किसी से नहीं होता है, वरन वह किसी में होता है और फिर जो भी उस प्रेम की परिधि में आता है उसे वह मिल जाता है, बिना किसी भेद के. प्रेम किसी भी प्रकार से व्यक्ति-केन्द्रित भाव नहीं है.
यह कहना कि "मैं सिर्फ तुमसे प्रेम करता/करती हूँ." इस से बड़ा कोई झूठ नहीं हो सकता है.
लेकिन फिर ऐसे में यह भ्रम होना स्वाभाविक है कि आखिर वैयक्तिक रूप से अपने किसी निकटवर्ती साथी, सम्बन्धी, मित्र या किसी के भी प्रति मन में उठने वाली भावना क्या है?
वह निस्संदेह प्रेम नहीं हैं, वरन प्रेम से इतर भावनाएं हैं, जिन्हें प्रेम मान लिया जाता है. प्रेम को समझने से पहले हमें कुछ शब्दों के विभेद को भी समझ लेना होगा.
प्रेम, प्यार, मोह (मोहब्बत) और अनुराग (इश्क) परस्पर समानार्थी शब्द नहीं हैं, बल्कि इनके अपने अर्थ और अपनी मूल भावनाएं हैं.
प्रेम शक्ति चाहता है, (Prem seeks Power )
प्यार को अपनी अभिव्यक्ति के लिए काया चाहिए. ( Pyar seeks Body ).
मोह (मोहब्बत) माधुर्य चाहता है, (Moh seeks Maadhurya ).
अनुराग (इश्क) आकर्षण चाहता है. ( Anurag seeks Attraction ).
प्रेम शक्ति चाहता है. यह शक्ति शरीर की नहीं, मन की शक्ति है. एक कमजोर व्यक्ति सब कुछ तो कर सकता है. वह विश्व-विजयी हो सकता है, प्रकांड विद्वान् हो सकता है, परन्तु उसमे प्रेम नहीं हो सकता है.
प्रेम का मूल निर्मोह है. निर्मोह के धरातल पर ही प्रेम का बीज अंकुरित होता है. निर्मोह की शक्ति के बिना प्रेम की प्राप्ति नहीं हो सकती है. पुष्प अगाध और निस्वार्थ प्रेम का प्रतीक है. वह प्रेम रुपी सुगंध बिना किसी भेद के फैलाता है, लेकिन कभी किसी के मोह में नहीं आता. कोई दिन-रात बैठकर पुष्प के सुगंध की चर्चा करता रहे, लेकिन फिर भी पुष्प उसके मोह में नहीं आता. वह उसके जाने के बाद भी उसी प्रकार सुगंध फैलाता रहता है. वह एक निश्छल बालक के लिए भी उतना ही सुगन्धित होता है, जितना कि किसी भी अन्य के लिए.
प्रेम प्राप्ति का माध्यम नहीं है. प्रेम बंधन भी नहीं है. प्रेम तो मुक्त करता है. प्रेम जब अंकुरित हो जाता है तब प्राणिमात्र के बीच भेद नहीं रह जाता.
किसी की माँ को गाली देने वाला, अपनी माँ से प्रेम नही कर सकता. किसी भी स्त्री का अपमान करने वाला, अपने परिवार की स्त्रियों से प्रेम नहीं कर सकता. किसी के बच्चे पर हाथ उठा रही माता को अपने पुत्र से मोह तो हो सकता है, लेकिन उसके मन में सहज प्रेम नहीं हो सकता.
प्रेम जब होता है, तब सिर्फ प्रेम ही होता है. प्रेम किसी से नहीं होता है, प्रेम किसी में होता है, ठीक वैसे ही जैसे कि पुष्प की सुगंध हमसे या आपसे नहीं है, वह पुष्प में है, जो सबके लिए है.
बस यही प्रेम है.



Amit Tiwari

अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद
(09266377199)

Monday, November 22, 2010

प्रेम के नए सृजनात्‍मक तौर तरीके (Creative techniques of Love)


एक वक़्त हुआ करता था कि जब हर जगह फर्स्ट हैण्ड का बोलबाला और मांग हुआ करती थी. उस वक़्त में प्रेमी-प्रेमिका भी फर्स्ट हैण्ड ही खोजे जाते थे. प्रेम में कोई विशेष रासायनिक-भौतिक शर्ते नहीं हुआ करती थीं. उस वक़्त में लड़कियां अपनी सहेलियों को बताया करती थीं कि मेरा प्रेमी तो किसी लड़की की तरफ आँख उठाकर देखता भी नहीं. मुझसे पहले उसने किसी लड़की के बारे में सोचा भी नहीं. लड़के भी कुछ इसी तरह अपनी प्रेमिका की तारीफ करते थे.. 
उस वक़्त में लड़कों को किसी लड़की से प्रेम सम्बन्ध शुरू करने के लिए कुछ ख़ास मशक्कत नहीं करनी होती थी. लड़की के सामने कुछ साधू जैसे बनके रहो. उसकी सहेलियों की तरफ भी नज़र उठाकर नहीं देखना. ये सब कुछ अच्छे लड़कों की पहचान होती थी. किसी तरह उस लड़की से दोस्ती के बाद जब बात धीरे धीरे प्रेम के इजहार तक पहुंचती थी तो बस कुछ गिने-चुने ही संवाद हुआ करते थे. वो बिल्कुल शराफत से कहा करता था कि -'प्रिये तुम मेरी जिंदगी की पहली और आखिरी लड़की हो, मैंने तो कभी तुम्हरे सिवा किसी दूसरी लड़की कि तरफ आँख उठाकर देखा भी नहीं कभी. तुम्ही मेरा पहला और आखिरी प्रेम हो.' हर लड़के को ये संवाद याद हुआ करते थे. 
कई बार तो हम में से कई लड़के हर बार यही संवाद बोल कर काम चला लेते थे. बीसवीं बार भी हम यही कहते थे. हम जब भी करते पहला और सच्चा प्रेम ही करते. हमारी गिनती कभी भी पहले से आगे नहीं बढती थी. ना ही कभी हमारे प्रेम की सच्चाई कम होती थी. हमेशा उतना ही सच्चा प्रेम करते थे. 
हमारी बीसवीं प्रेमिका भी हमें इतना ही पहला और सच्चा मानती थी जितना कि हमारी पहली प्रेमिका ने माना था. 
सब कुछ ठीक ठाक ही चल रहा था. सबके पास पहले और सच्चे प्रेमी प्रेमिका हुआ करते थे. लेकिन फिर अचानक से ग्लोबलाइजेशन (वैश्वीकरण) के कारण बाज़ार ने अपनी तस्वीर बदल ली. सेकंड पार्टी और थर्ड पार्टी का चलन बढ़ने लगा. अब लोगों को लगने लगा कि नयी 'मारुती -800 ' लेने से बढ़िया है कि अगर उसी रेट में कहीं से बढ़िया सेकंड हैण्ड एस-कोडा या होंडा सिटी मिल जाए तो क्या बुराई है. जैसे जैसे बाज़ार ने अपनी रंगत बदली तो हर जगह की रंगत बदलने लगी. बल्कि अब तो बाज़ार की हालत तो ये गयी कि कोई नयी कार भी ले तो लोगों को लगता है कि झूठ बोल रहा है. 
अब प्रेमी भी कुछ ऐसे ही खोजे जाने लगे. अब धीरे धीरे ये हालत हो गयी कि अगर कोई लड़का कहता कि मैंने तुम्हारे सिवा किसी की ओर नज़र उठा के देखा ही नहीं, तो लड़की उसकी आँखें टेस्ट करवाने निकल पड़ती कि कहीं नज़रें कमजोर तो नहीं हैं. जैसे ही कोई बंदा ऐसा साधू जैसा दिखता है तो लड़की सोचती है कि या तो फरेब कर रहा है, नहीं तो कोई रासायनिक-भौतिक कमी होगी. कॉलेज में पहुँच चुका लड़का किसी भी लड़की के फेर में ना पड़ा हो, ऐसा तो सोचकर भी आश्चर्य होने लगा. अब तो कोई लड़का बेचारा सही का भी साधू हो तो भी शक की ही नज़र से देखा जाने लगा. लड़कों के सामने भयानक मंदी का दौर छा गया. 
बाज़ार की मांग के हिसाब से नयी रणनीतियां जरूरी हो गयी थीं. अब तो पहली और आखिरी कहना जैसे कोई गुनाह सा हो गया था. 
अंततः नयी रणनीतियां भी सामने आ ही गयीं. अब लड़कों ने पहली-आखिरी कहना छोड़ दिया. अब वो खुद ही अपने पहले प्रेम के किस्से सुनाने लगे. इसके लिए बाकायदा प्लाट तैयार किया जाने लगा. 
पहले लड़की से दोस्ती करो. उसकी सहेलियों वगैरा से भी कोई खास डरने की जरूरत नहीं रही. सबसे खुल के बोलो बात करो. फिर एक दिन यु ही अचानक से किसी बात के बीच में गंभीर हो जाना. बस इतना कहना- "... तुम जब ऐसे कहती हो ना.. तो.. अक्चुअली (दरअसल) ... खैर छोड़ो... " बस इतना कहकर चुप हो जाना. अब लड़की भला ऐसे कैसे छोड़ दे?? एक दोस्त होने के नाते पूछना तो पड़ेगा ही. वो भी उत्सुकता के वशीभूत होकर जिद करती है-"बताओ तो क्या बात है. अपने दोस्त को भी नहीं बताओगे?" एक दो बार टालकर फिर लड़का अपनी कहानी बता देता है, बात के बीच में एक दो बार आँख पर रुमाल या हाथ जरूर फेर लेता है.  और फिर उस दिन वो बिना कोई और बात किये कुछ उदासी के साथ विदा लेके चल देता है. 
इस सब में दो-तीन तरह के सेन्ट्रल आईडिया की कहानी होती है. या तो पहले वाली कहानी की लड़की दुनिया से गुज़र गयी, या फिर किसी दूसरे शहर चली गयी,  या उसकी शादी हो गयी या फिर आखिर विकल्प ये कि बेवफाई कर गयी. लड़के के ही किसी दोस्त के साथ वफ़ा निभाने लगी. लड़का बेचारा एक दम दूध का धुला हुआ उसकी बेवफाई में तड़प रहा होता है. उसे सहानुभूति की सख्त जरूरत होती है. हालाँकि वो सहानुभूति से भी इंकार करता है. वो कहता है कि उसने उसके बाद किसी दूसरी लड़की की तरफ देखा ही नहीं. दिल या मन जो भी हो.. वो करता ही नहीं .. 
अब तो किसी और लड़की के बारे में सोचता भी नहीं है. ऐसा ही और भी कुछ-कुछ. इस सब में एक बात पक्की है कि पहली कहानी वाली लड़की किसी भी हालत में उस शहर में नहीं होती है जिस शहर की लड़की को कहानी बताई जा रही होती है. 
हालाँकि सुनने वाली लड़की इतना दिमाग नहीं लगाती है. वो भावनाओं में बह रही होती है. उसे दो बातें समझ में आ जाती हैं, एक तो ये कि लड़के में कोई कमी नहीं है, वो प्रेमी बनने की काबिलियत रखता है. दूसरा ये कि लड़का बहुत सही भी है. ईमानदार है, जो कि उसने अपनी पिछली बात खुद ही बता दी. कुछ भी नहीं छिपाया. विश्वास के काबिल है. दिल का मारा है. किसी लड़की ने बेवफाई की है. और फिर इस तरह से सहानुभूति के रूप में नए प्रेम का सृजन होता है. कभी कभी लड़का पहली कहानी में खुद को भी दूध का धुला नहीं साबित करता है. बल्कि वो कहता है कि वो गलत था, लेकिन अब उसे अपनी गलती का एहसास है और वो प्रायश्चित की आग में जल रहा है. उसकी तो हंसी भी गम को छुपाने का तरीका है. इस सब में बड़े-बड़े शायरों की मेहनत भी बहुत काम आ जाती है. कुल मिलाकर इस तरह से एक नए प्रेम का सृजन होता है.
यही नहीं...
नए प्रेम के सृजन का एक और भी बहुत तेजी से उभरता हुआ और कामयाब तरीका भी आ गया है. ये वो तरीका है जो कि हमने यहाँ इस्तेमाल किया है. 
अब ये भी एक सफल तरीका है कि लड़की के सामने खुद ही लड़कों की बुराई कर दो. सामने वाले की चादर को इतना गन्दा साबित कर दो कि तुम्हारी चादर खुद चमकदार लगने लगे. क्यूंकि ऐसा हुआ है. कभी कभार इस तरह की बात करने के बाद लड़की उल्टा हमसे ही प्रेम करने की इच्छुक हो बैठी. तो हमसे भी सावधान रहिये. 
हालाँकि यह सब पूर्ण सत्य नहीं है. लेकिन पूर्ण असत्य भी नहीं है. बस कहने का प्रयास यही है कि किसी पर भी विश्वास कीजिये.. लेकिन अन्धविश्वास नहीं.. 
FAITH IS GOOD... BUT BLIND FAITH IS HARMFUL..

अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद

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