किसी को याद करके रोने की
फुर्सत तो कभी मिली ही नहीं
वो जो किसी के होने से खिलती है,
वो कली खिली ही नहीं.
हाँ मगर दुनिया की दुनियादारी में
खुद से मिलना भी तो मुश्किल हो जाता है
और बस ऐसे ही जब कभी
खुद से मिले हुए अरसा गुजर जाता है...
तो फिर अपनी याद में ही कुछ आंसू आ जाते हैं...
और फिर वही आंसू
कागज पर गिरकर 'कविता' बन जाते हैं
कभी अधरों पर मुस्कान लिए,
कभी हृदय में दर्द लिए....
- अमित तिवारी
समाचार संपादक
अचीवर्स एक्सप्रेस
oye hoye.. kamaal krte ho tiwari ji.... baat kya h..
ReplyDeleteसुन्दर भाव ..कविता का सृजन कैसे होता है महसूस हुआ ..
ReplyDelete@Bitti -hmmm TIWARI ji to kamal hi hain....
ReplyDelete:-)
@ Sangeeta ji - bahut bahut aabhar..
और फिर वही आंसू
ReplyDeleteकागज पर गिरकर 'कविता' बन जाते हैं
आपने एकदम सही कहा है ... मन में न जाने कितने भाव अठखेलियाँ करते हैं ... न जाने कितने दर्द करवटें बदलते रहते हैं ...
जब ये बाहर आते हैं तो कविता के रूप में आते है ...
जब कोई अमित किसी संजय से मिलता है
ReplyDeleteएक कविता तब भी बनती है :)
है न भाई ........!
कविता बनने की प्रक्रिया को कितनी खूबसूरती से बयाँ कर दिया..
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
This comment has been removed by the author.
ReplyDelete@ बिलकुल सही संजय भाई...एक कविता तब भी बनती है, जब आप जैसे भाइयों का साथ होता है..
ReplyDeleteकोमल भावो की और अभिवयक्ति .....
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