कलम बहुत दिनों से रोना भूल बैठी है.
दर्द में पलकें भिगोना भूल बैठी है...
आंसुओं का सिलसिला भी गुम हुआ है
उनींदी ये आँखें सोना भूल बैठी हैं....
उसने जाने क्यों वफ़ा का रुख बना लिया
मेरा दिल है एक खिलौना, भूल बैठी है...
उसकी वफ़ा का आलम ऐसा, सपने भूल गए
नींदे भी पलकों का बिछौना भूल बैठी है...
-अमित तिवारी
समाचार संपादक,
अचीवर्स एक्सप्रेस
बहुत सुन्दर
ReplyDelete@ M Verma ji.... धन्यवाद सर जी...
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