आबरू की कीमत भी हर जगह
बराबर नहीं होती. उसमें भी नफा-नुकसान का अलग-अलग गणित लगाया जाता है. यही
वजह है कि मोमबत्तियां लेकर कोई जुलूस आगे नहीं बढ़ रहा है.
जिंदाबाद-मुर्दाबाद के नारे भी नहीं लगाये जा रहे हैं. मीडिया के पास भी ये
सब दिखाने का वक़्त नहीं है. सोफेस्टिकेटेड यूथ के पास इनके समर्थन के लिये
मोमबत्तियां जलाने का वक़्त नहीं है. क्योंकि ये सब निर्भया नहीं हैं.
ये उन दलित लड़कियों की दास्तान है, जिनके साथ कुछ गलत होना हमें
झकझोरता नहीं है. म्हारा देस हरियाणा के नारे लगाने और खुद को बेहद हिम्मती
बताने वाले लोगों की इस कायराना हरकत पर बोलने की हिम्मत किसी में नहीं हो
रही है. हिसार में दलित परिवार की लड़कियों का बलात्कार कोई घटना नहीं है.
उनकी आवाज को दबाने की कोशिश और उनके परिवार वालों की प्रताड़ना कोई खबर
नहीं है. पीड़ित लड़कियां दिल्ली में अपने लिये न्याय मांग रही हैं. और मुझे
बिल्कुल उम्मीद नहीं है कि उन्हे कभी कोई न्याय मिलेगा. न्याय उनके लिये
और वो न्याय के लिये बनी ही नहीं हैं. क्योंकि ये सब निर्भया नही हैं.
- अमित तिवारी
सीनियर सब एडिटर
दैनिक जागरण
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDelete--
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा आज सोमवार (12-05-2014) को ""पोस्टों के लिंक और टीका" (चर्चा मंच 1610) पर भी है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
हरियाणा में समाज को बदलने में सेर है अभी ... इसा लगता है ...
ReplyDeleteधन्यवाद शास्त्री जी... आपका बहुत बहुत आभार...
ReplyDeleteदिगंबर भाई... और कितनी देर लगेगी इस समाज को बदलने में.. यही तो सोचने का विषय है।
ReplyDeleteyahi wo kadwa sach hai jo ham jante hain aur halak se neeche utar lete hain
ReplyDeleteजी वंदना जी...
ReplyDeleteयही तो दुखद है...