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कारण स्पष्ट है कि किसी भी 'वाद' में 'जीवन-मूल्य' की चर्चा नहीं है. हर जगह 'जन-नायक'और 'लोक-नायक' की बात है. लेकिन यह मानवी सभ्यता किसी 'जन-नायक' या लोक-नायक' की नहीं वरन एक 'मित्र-नायक' की प्रतीक्षा में है. अब 'सुपर-पॉवर' नहीं 'सुपर पर्सन' की जरूरत है. वही 'मित्र-नायक' ही 'युग-नायक' बनेगा जिसके अन्दर विश्व से मैत्री और विश्वनाथ से प्रीति का भाव भरा होगा. विश्व भर में व्याप्त हिंसा का निवारण मैत्री और करुणा के भाव से ही हो सकता है. 'वसुधैव कुटुम्बकम' का ध्येय वाक्य हमें विश्व को बाज़ार नहीं वरन परिवार मानना सिखाता है.
हम बाज़ार नहीं बाजारवाद के विरोधी हैं. हमारी संस्कृति ने भी बाज़ार का समर्थन किया है. लाभ की बात हमने भी की है, लेकिन हमने 'शुभ-लाभ' की बात की है. हमारा लाभ भी शुभ से नियंत्रित है. 'लाभालाभ' की संस्कृति नहीं है हमारी. 'जो कमायेगा, वो खायेगा' की संस्कृति से विश्व का कल्याण संभव नहीं है. 'जो कमाएगा, वो खिलायेगा' की संस्कृति को जागृत करना होगा हर मन में. 'जियो और जीने दो' ही नहीं बल्कि 'जियो और जीने की प्रेरणा दो' सीखने की जरूरत है.
बढ़ते उपभोक्तावाद से उत्पन्न हुई समस्यायों का हल उपभोक्तावादी तरीकों से नहीं किया जा सकता है. पेड़ की पत्तियां छांटने की नहीं वरन समस्या को मूल से उखाड़ फेंकने की आवश्यकता है. आतंकवादी को मारने से आतंकवाद नहीं मरता है. 'बुरा व्यक्ति' हो या बुरे व्यक्ति का विरोधी, दोनों के अस्तित्व के लिए बुराई जरूरी है. बात चाहे 'सीआईए' की हो या 'आई एस आई' की, आतंकवाद दोनों की जरूरत है.
विषमता और गैरबराबरी को मिटाए बिना समस्यायों से नहीं लड़ा जा सकता है. बिना किसी 'भागवत व्यक्तित्व' के किसी 'वैश्विक नेतृत्व' की कल्पना बेमानी है. 'बुद्ध' चाहे भारत में हों या अमेरिका में, ऐसा नेतृत्व जिसके भीतर मैत्री, प्रीति और करुणा का भाव भरा होगा, जो संपूर्ण चर-अचर से एकात्म स्थापित कर सकता है, वही इस विश्व को बचा सकेगा. ऐसे किसी भी व्यक्तित्व के लिए एक मात्र मार्ग 'सम्बन्धवाद' ही है. सम्बन्ध-धर्म ही तमाम प्रश्नों का उत्तर बन सकता है.
आज विश्व को 'यूज एंड थ्रो' की नहीं 'सात जन्मो के सम्बन्ध' की दरकार है. तभी यह खुबसूरत दुनिया जीने के लायक बनी रह पायेगी.
-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद
nice
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