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दुनिया के वाहियात खयालात पर लिखूं
या लिखूं मैं यार-तुम और जाम की बातें,
काली सुबह लिखूं, उजाली रात पर लिखूं
या लिखू कि देश घायल सा पड़ा है,
या कहूँ कि नौजवां है नींद में,
या कि कुछ पल फिर तकूँ मैं राह में
एक नए सूरज कि इक उम्मीद में...
हीर राँझा की नयी अठखेलियाँ
फिर सीरी-फरहद का रोमांस हो,
फिर कहानी का धरातल हो नया
फिर से लिखने का नया इक चांस हो..
देश दिल धड़कन ज़माना
सब है अपना, पन बेगाना..
प्यार दिल एहसास थकता..
हर घडी विश्वास थकता..
क्या किस्सा छोडूं, कौन सी बात पर लिखूं...
काली सुबह लिखूं उजाली रात पर लिखूं...
-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद
(तस्वीर गूगल सर्च से साभार)
बहुत सुन्दर रचना धन्यवाद|
ReplyDeleteहिंदी ब्लाग लेखन के लिए स्वागत और बधाई
ReplyDeleteकृपया अन्य ब्लॉगों को भी पढें और अपनी बहुमूल्य टिप्पणियां देनें का कष्ट करें
प्रशंशनिये
ReplyDeleteआपकी सोच और कविता ,दोनों ही
इस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
ReplyDeleteसार्थक लेखन के लिये आभार एवं “उम्र कैदी” की ओर से शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteजीवन तो इंसान ही नहीं, बल्कि सभी जीव भी जीते हैं, लेकिन इस मसाज में व्याप्त भ्रष्टाचार, मनमानी और भेदभावपूर्ण व्यवस्था के चलते कुछ लोगों के लिये यह मानव जीवन अभिशाप बन जाता है। आज मैं यह सब झेल रहा हूँ। जब तक मुझ जैसे समस्याग्रस्त लोगों को समाज के लोग अपने हाल पर छोडकर आगे बढते जायेंगे, हालात लगातार बिगडते ही जायेंगे। बल्कि हालात बिगडते जाने का यही बडा कारण है। भगवान ना करे, लेकिन कल को आप या आपका कोई भी इस षडयन्त्र का शिकार हो सकता है!
अत: यदि आपके पास केवल दो मिनट का समय हो तो कृपया मुझ उम्र-कैदी का निम्न ब्लॉग पढने का कष्ट करें हो सकता है कि आप के अनुभवों से मुझे कोई मार्ग या दिशा मिल जाये या मेरा जीवन संघर्ष आपके या अन्य किसी के काम आ जाये।
http://umraquaidi.blogspot.com/
आपका शुभचिन्तक
“उम्र कैदी”