ताजमहल बनवाऊं मैं......
होंठ गुलाबी, नयन झील,
या गीत देश के गाऊँ मैं....
यौवन भटक गया देश....
का, जाने किन सपनों में..
प्रेम-राग, सीने में आग....
राह कौन सी जाऊं मैं...!!!!
दिल कहता है, हीर ढूंढ लूं,
जुल्फों में तकदीर ढूंढ लूं..
रांझा मुझको बना दे कोई
ऐसी इक तस्वीर ढूंढ लूं...
देखे नयन ख्वाब में उस-
को, गीत उसी के गाऊँ मैं,
प्रेम राग, सीने में आग......
लेकिन लहू उबल जाता है..
हर सपना, तब जल जाता है.
जब चिता में सीता जलती है,
इन्द्र किसी को छल जाता है..
पलकों की छांवों में झूमूँ.........
या ये आग बुझाऊं मैं........!!!
प्रेम राग, सीने में आग..........
मधुमय-मधुशाल बने जीवन,
ना सुने कान कोई क्रंदन,
घुंघरू की झनक कानों में हो,
हर दिन हर पल महके चन्दन,
क्या ऐसे ही सपनों में
अपनी चिता सजाऊं मैं,
प्रेम राग, सीने में आग..
सोता यौवन, खोता बचपन,
हंसती मृत्यु, रोता जीवन,
ना देश भान, ना स्वाभिमान,
ना जग बाकी, ना जग वंदन,,
कैसे भेद मिटाऊं सारे
कैसे अलख जगाऊं मैं..
प्रेम राग, सीने में आग....
-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद
(तस्वीर गूगल सर्च से साभार)
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteधन्यवाद वंदना जी..
ReplyDeletehmm.nice hai ji
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ReplyDeletewah amit babu bahot accha likhey hai...aisey hi likha karo....keep up the good work.....
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