हाथों से फिसल जाती है।
क्यूँ जीवन की हर खुशियाँ
जीवन को छल जाती हैं।।
क्यूँ खोता हूँ हर पल
मैं ही यकीन अपनों का।
क्यों कर जाता है हर कोई
क़त्ल मेरे सपनो का।।
क्यों नहीं समझती है दुनिया
मेरे दिल के जज्बातों को ।
क्यूँ तरसा देती है दुनिया
प्यार भरी दो बातों को।।
क्या यही जिंदगी है और
बस रोते रहना जीवन है।
क्या झूठी-सच्ची रस्मों में
बहते रहना जीवन है।।
काश कोई तो जीवन को
एक नई परिभाषा दे।
काश कोई तो जीवन को
प्रीत भरी इक भाषा दे।।
काश सुनहरी धरती हो,
हँसता नीला आकाश बने।
काश कहीं दिल के कोने में
फिर से वो विश्वास बने।।
-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद
hmm....sahi me
ReplyDeletejeewan ek sangharsh hai..
aur ye kavita isi ko hi saarthak siddhh kar rahi hain.......
nice & true lines .....
keep it up
काश कोई तो जीवन को
ReplyDeleteएक नई परिभाषा दे।
काश कोई तो जीवन को
प्रीत भरी इक भाषा दे।।
काश सुनहरी धरती हो,
हँसता नीला आकाश बने।
काश कहीं दिल के कोने में
फिर से वो विश्वास बने।।
काश... लेकिन ऐसा हो नहीं पाता कभी..
मन के दर्द को सामने रखती एक बहुत अच्छी कविता..
बहुत पसन्द आया
ReplyDeleteहमें भी पढवाने के लिये हार्दिक धन्यवाद
बहुत देर से पहुँच पाया ....माफी चाहता हूँ..