मत छोड़ तू पतवार, लहरों ने पुकारा.
मत तीर पर रुक यार, लहरों ने पुकारा..
क्या कहें कि स्वप्न सब साकार हैं.!
टल गया सर से व्यथा का भार है.!
क्या कहें कि सूर्य पहुंचा हर तिमिर में.!
क्या कहें कि मिट गया अंधियार है.!
कर स्वप्न सब साकार, लहरों ने पुकारा...
मत तीर पर रुक यार....
क्या फूल अब बेख़ौफ़ होकर बोलते हैं ?
क्या महक हर सांस में लब घोलते हैं ?
क्या कहीं कोई कली टूटी नहीं ?
क्या दर्द में अब भी सभी दिल डोलते हैं ?
है प्रश्न का अम्बार, लहरों ने पुकारा...
मत तीर पर रुक यार.....
क्या कहीं कश्ती कोई डूबी नहीं है ?
आग में बस्ती कोई डूबी नहीं है ?
क्या कहीं कोई सिसकता शव नहीं है ?
ममता कहीं सस्ती कोई डूबी नहीं है ?
करनी है कश्ती पार, लहरों ने पुकारा...
मत तीर पर रुक यार...
क्या चिता सीता की ठंडी हो गयी है ?
कृष्ण की गीता भी शायद सो गयी है.!
आज हर मीरा लिए विष-प्याल बैठी,
बांसुरी क्यों श्याम की चुप हो गयी है ?
कर प्रश्न हर निस्तार, लहरों ने पुकारा...
मत तीर पर रुक यार....
द्रौपदी फिर दांव में खेली गयी है.!
हर गली हर गाँव में खेली गयी है.!
अब मुझे ही चीर उसका है बढ़ाना.!
यह शपथ उर में मेरे ले ली गयी है.!
कर चेतना संचार, लहरों ने पुकारा..
मत तीर पर रुक यार....
है लहू सब ओर, कैसे मैं अधर का पान कर लूं ?
है तिमिर घनघोर, कैसे प्रेमिका बांहों में भर लूं. ?
कैसे करूं मैं प्रेमलीला, छोड़कर कर्त्तव्य सारे.!
शबनमी बूंदों में कैसे मैं निखर लूं.?
लक्ष्य है मझधार लहरों ने पुकारा
मत तीर पर रुक यार....
-अमित तिवारी
समाचार संपादक
निर्माण संवाद
(तस्वीर गूगल सर्च से साभार)
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लहरों ने पुकारा
ReplyDeleteमत तीर पर रुक यार
बहुत अच्छी प्रेरक कविता,
बधाई।
धन्यवाद महेन्द्र जी,
ReplyDeleteसबका सहयोग रहेगा तो कविता भी सार्थक हो जायेगी।
sundar rachna...
ReplyDeleteaisi hi rachnaon kii ummeed hai..
karte rahiye....
shubhkamnayein....
द्रौपदी फिर दांव में खेली गयी है.!
ReplyDeleteहर गली हर गाँव में खेली गयी है.!
अब मुझे ही चीर उसका है बढ़ाना.!
यह शपथ उर में मेरे ले ली गयी है.!
कर चेतना संचार, लहरों ने पुकारा..
मत तीर पर रुक यार....
Ek aur achchhi kavita..
badhai...
lage rahiye...
sabka sahyog bhi milta rahega...
kavita bhi sarthak hogi...
प्रेरणादायक अभिव्यक्ति
ReplyDeleteबेहतरीन रचना....
ReplyDeleteप्रेरणास्पद अभिव्यक्ति..
बधाई..
bahot acchi rachna hai.....tum likhtey yaar accha ho.....aise hi likha karo....
ReplyDeletebeautiful poem ..yeah .... veer ras ki poem ..
ReplyDeleteहृदयस्पर्शी और प्रेरणादायी रचनाओं के लिए बधाई...अमित जी कुछ तो खास है आपकी रचनाओं में
ReplyDeleteहै लहू सब ओर, कैसे मैं अधर का पान कर लूं ?
है तिमिर घनघोर, कैसे प्रेमिका बांहों में भर लूं. ?
कैसे करूं मैं प्रेमलीला, छोड़कर कर्त्तव्य सारे.!
शबनमी बूंदों में कैसे मैं निखर लूं.?
लक्ष्य है मझधार लहरों ने पुकारा
मत तीर पर रुक यार....
@Dr. Brijesh - इस उत्साहवर्धन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद ..
ReplyDelete@Smit - धन्यवाद